हाजीपुर. निर्माण रंगमंच की ओर से आयोजित तीन दिवसीय सफदर हाशमी एकल नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन ””दादी मां”” की प्रस्तुति की गयी. नगर के सांचीपट्टी, विवेकानंद कॉलोनी स्थित निर्मलचंद्र थियेटर स्टूडियो में इस एकल नाटक को निर्माण रंगमंच, हाजीपुर की ओर से प्रस्तुत किया गया. इसके लेखक व निर्देशक पवन कुमार अपूर्व थे. मार्गदर्शन क्षितिज प्रकाश का था. यह कहानी अपने ही घर में अपनी जगह तलाशने की कश्मकश को बखूबी दर्शाती है. इसमें बीमार दादी के सपनों के लिए एक लड़के के संघर्ष को दिखाया गया है. नाटक का कथासार यूं है कि कुमार पाल एक अनाथ लड़का है, जिसकी परवरिश उसकी दादी करती है. जब कुमार पाल बड़ा होता है तो उसे पता चलता है कि उसके दादा, जिनके पास ज़मीन और मकान का मालिकाना हक था, उनसे धोखे से ज़मीन और मकान छोटे चाचू जो गांव के प्रधान भी हैं, अपने नाम करा लेते हैं. छल से पैसों के बल पर संपत्ति हड़प लेने के बाद वे कुमार पाल के दादू के हाथ-पैर बांध कर उन्हें नहर में डुबो देते हैं. जब कुमार पाल के पिता ने इसका विरोध किया तो उन्हें भी छोटे चाचू यानी प्रधान जी मरवा देते हैं. जब कुमार पाल बड़ा होता है तो यह कहानी दादी उसे बताती है. यह सुनकर कुमार पाल बदले की आग से जलने लगता है, लेकिन वह प्रधान जी का कुछ बिगाड़ नहीं सकता था, क्योंकि वह आर्थिक रूप से बहुत कमजोर और गरीब था. वह दिन-रात मेहनत-मजदूरी कर दादी के इलाज़ के लिए पैसे जुटाता है. इन सब के बावजूद वह प्रधान जी से बदला लेने की नयी-नयी तरकीबें खोजता है. एक दिन कुमार पाल के रचे हुए चक्रव्यूह में प्रधान जी बुरी तरह से फंस जाते हैं और फिर से सारी जमीन और मकान कुमार पाल अपने नाम कर लेता है. लेकिन, जिस दादी के सपने को साकार करने के लिए वह इतना कुछ कर रहा होता है, वही अपना सपना पूरा होते नहीं देख पाती है और दादी दम तोड़ देती है. युवा रंगकर्मी पवन कुमार अपूर्व ने अपने सशक्त अभिनय से नाट्य प्रस्तुति को जीवंत बनाया. यशवंत राज ने ध्वनि तथा तरुणेश कुमार व विवेक यादव ने प्रकाश की व्यवस्था संभाली.
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