Home बिहार जमुई अरण्य संस्कृति की रक्षा के लिए श्री राम ने वनवासी जीवन को अपनाया था – प्रो गौरी

अरण्य संस्कृति की रक्षा के लिए श्री राम ने वनवासी जीवन को अपनाया था – प्रो गौरी

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अरण्य संस्कृति की रक्षा के लिए श्री राम ने वनवासी जीवन को अपनाया था – प्रो गौरी

जमुई. वन महोत्सव के उपलक्ष्य पर केकेएम कॉलेज जमुई में राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के तत्वावधान में पौधरोपण किया गया. साथ ही एनएसएस के प्रोग्राम ऑफिसर डॉ अनिंदो सुंदर पोले की की अध्यक्षता में भारतीय संस्कृति में पर्यावरण एवं पौधरोपण के बहुआयामी महत्व विषय पर लघु गोष्ठी की गयी. मौके पर प्रभारी प्राचार्य डॉ मनोज कुमार ने कहा कि पौधरोपण न सिर्फ पर्यावरण के लिए बल्कि मानव जीवन के लिए भी अत्यंत आवश्यक है. उन्होंने कहा कि एक वृक्ष दस पुत्रों के समान होता है. पीपल का वृक्ष 24 घंटे ऑक्सीजन प्रदान करता है. इसलिए हर व्यक्ति को अपनी मां के नाम एक वृक्ष अवश्य लगाना चाहिए. डॉ अनिंदो सुंदर पोले ने कहा कि पौधरोपण मानव का पुण्य कर्तव्य है. उन्होंने कहा कि कॉलेज परिसर में वृक्ष दो उद्देश्यों से लगाये जाते हैं पहला परिसर को सुंदर बनाना और दूसरा इसे प्रदूषणमुक्त बनाये रखना. उन्होंने कहा कि पेड़-पौधा विषैले गैसों को सोखते हैं और प्रकृति की रक्षा करते हैं. अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो गौरी शंकर पासवान ने भारतीय संस्कृति में अरण्यक परंपरा की चर्चा करते हुए कहा कि रामायण काल में भगवान श्रीराम को दंड स्वरूप वनवास नहीं दिया गया था, बल्कि उन्होंने ऋषियों, मुनियों और अरण्य संस्कृति की रक्षा के लिए वनवासी जीवन को अपनाया था. उन्होंने बताया कि हर व्यक्ति को पांच एफ (फूड, फोल्डर, फ्यूल, फाइबर, फर्टिलाइजर) वाले पेड़ लगाने चाहिये, ताकि जीवन की मूलभूत आवश्यकतायें पूरी हो सकें. उन्होंने बताया कि हर साल दुनियाभर में लगभग 15 अरब पेड़ काटे जाते हैं जबकि मात्र 5 अरब पेड़ ही लगाये जाते हैं, जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. उन्होंने यह भी कहा कि जनसंख्या वृद्धि गरीबी को जन्म देती है और गरीबी भूमि और वनों के दोहन को बढ़ावा देती है. गोष्ठी में उपस्थित प्रो डीके गोयल, प्रो सरदार राम, प्रो रणविजय सिंह, डॉ दीपक कुमार, डॉ सत्यार्थ प्रकाश, प्रो कैलाश पंडित, डॉ श्वेता कुमारी, डॉ रश्मि, डॉ लिसा और डॉ अजीत कुमार भारती सहित अन्य वक्ताओं ने कहा कि देश की 33 प्रतिशत भूमि पर वन होना जरूरी है, लेकिन वर्तमान में भारत में केवल 21.7 प्रतिशत भूमि ही वनों से आच्छादित है.

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