विषहरी मेला में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, तंत्र मंत्र सिद्धि के लिए चलता रहा अनुष्ठान

यह पूजा लोक आस्था का प्रतीक है

By RAJKISHORE SINGH | July 29, 2025 10:57 PM
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बेलदौर. प्रखंड के सकरोहर पंचायत के चननदह स्थान स्थित मां भगवती सह विषहरी मंदिर में नागपंचमी के अवसर पर मंगलवार को आयोजित एक दिवसीय मेले में पूजा अर्चना एवं मां विषहरी के दर्शन को लेकर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. वहीं अहले सुबह से ही श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़ मां विषहरी की पूजा अर्चना करते रहे एवं मेले का भरपूर आनंद उठाते रहे. वहीं श्रद्धालुओं ने बताया कि विषहरी मेले को बिहुला विषहरी पूजा भी कहा जाता है, पूर्वी बिहार और कोसी सीमांचल क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से उक्त पूजा सह मेला मनाया जाता है. यह पूजा लोक आस्था का प्रतीक है. वहीं बेलदौर प्रखंड क्षेत्र में पांच जगह पर विषहरी मेला का आयोजन किया जाता है जो एक दिवसीय होता है. ख्यातिप्राप्त विषहरी स्थान चनदह, सकरोहर विषहरी स्थान में दूर दराज से तांत्रिक एवं ओझा पहुंचकर अपने मंत्रों की सिद्ध के लिए अनुष्ठान भी करते हैं. वहीं नपं के बेलदौर बाजार अवस्थित भगवती स्थान में दो दिवसीय विषहरी मेला के शुभ अवसर पर मेला का आयोजन किया जाता है, उक्त मेला में बिहुला बिषहरी का नाटक मंचन भी प्रस्तावित है. शांतिपूर्ण माहौल में उक्त मेले को संपन्न कराने को लेकर पुलिस बल भीड़भाड़ वाले जगहों पर मुस्तैद रहे. वहीं चननदह स्थान स्थित मां बिषहरी मंदिर को लेकर किंवदंती कथा है कि वर्षों पूर्व उक्त निर्जन स्थल पर पशुपालक अपने मवेशी चराने आते थे एवं समीप स्थित तालाब में जब आह्वान करते तो अचानक खाद्य पदार्थ एवं भोजन के लिए वर्तन प्रकट हो जाते थे,इस चमत्कार को देवी का महाप्रसाद समझ पशुपालक ग्रहण कर लेते थे धीरे धीरे इसकी चर्चा फेलने पर उक्त स्थल मां का गहवर बनाकर पुजा अर्चना शुरू हो गई, वहीं सर्पदंश पीड़ित को जब मां के गहवर का नीर पिलाया जाता तो वे स्वस्थ हो जाते थे, लोगों की मन्नतें भी पुरी होने लगी तो आस्थावान पचरासी गांव के लोगों ने उक्त स्थल भव्य मंदिर का निर्माण कर पूजा अर्चना शुरू कर दी. महाभारत काल से भी उक्त मंदिर का इतिहास जुड़े होने की चर्चाएं हैं , आस्थावान श्रद्धालुओं का मानना है कि जब अज्ञात वास में पांडव राजा विराट का गढ़ वर्तमान में सहरसा जिले के विराटनगर जा रहे थे बाबा फुलेश्वर नाथ मंदिर स्थित विशाल बरगद के पेड़ में अपने राजसी वस्त्र एवं दिव्य शस्त्र छिपाकर आदि शक्ति मां भगवती की पूजा अर्चना कर रवाना हुए थे.

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