परबत्ता. अमर सुहाग का प्रतीक मधुश्रावणी पूजा को लेकर नवविवाहिता के घरों में भक्ति का माहौल बना रहा. बुधवार को पूजा के दूसरे दिन कथा वाचक ने नवविवाहिता को बिहुला विषहरी एवं मनसा देवी की कथा, समुद्र मंथन, मां सती की दहन की कथा का रसपान कराया. कथा वाचक ने कहा कि मनसा देवी का आसन हंस होता है एवं उनके सहचर सर्प होते हैं. उनके दो हाथो में अमृत भरा सफेद और विष भरा लाल कमल होता है. जिनके जरिए वो मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करती हैं. इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता. नाम इस प्रकार है जरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जगतकारुप्रिया, आस्तिकमाता एवं विषहरी. मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है. इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ था. इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा. वहीं पारंम्परिक “ओन मधुश्रावणी पावनि अवसर पावि, राम, पाँचो बहिनियाँ, विषहरि, पूजल गेली आई ” आदि गीतों से माहौल भक्तिमय हो गया.
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