संग्रामपुर. कथावाचक ज्ञानी जी महाराज ने कहा कि कैसे देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया और भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार धारण मंदार पर्वत को अपने पीठ पर धारण समुद्र मंथन में अपनी भूमिका निभाई. वे बुधवार को प्रखंड के दीदारगंज पंचायत स्थित कहुआ गांव के शीतल धाम मंदिर परिसर में चल रहे सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन श्रद्धालुओं से कही. कथावाचक ने समुद्र मंथन की कथा सुनाते हुए कहा कि देवताओं और असुरों ने मिलकर मंदराचल पर्वत से समुद्र मंथन किया और भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार धारण कर अमृतपान में सहभागी बने. भगवान शिव ने निकले हलाहल विष का पान कर सृष्टि की रक्षा की. मंथन से अमृत, लक्ष्मी, ऐरावत, कल्पवृक्ष, उच्चैःश्रवा घोड़ा और हलाहल जैसे रत्न प्राप्त हुए. उन्होंने कहा कि समुद्र मंथन केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि यह जीवन का प्रतीक है. जीवन में संघर्ष और विषम परिस्थितियां भी आती हैं, लेकिन धैर्य, भक्ति और विश्वास से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि अमृत अमरत्व का, कल्पवृक्ष इच्छाओं की पूर्ति का और विष नकारात्मकता का प्रतीक है. जिसे भगवान शिव ने अपने भीतर समाहित किया. कथा के समापन पर आरती और श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद वितरण किया गया. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे और वातावरण भक्तिमय बना रहा.
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