Photos: बिहार में इस ट्रेन पर रहता है ठठेरे का कब्जा, दृश्य देखकर रह जाएंगे हैरान…

Photos: बिहार के सहरसा -मानसी रेलखंड पर चलने वाली समस्तीपुर-सहरसा पैसेंजर ट्रेन पर रोज ऐसा नजारा दिखता है जो हैरान करने वाला है. ट्रेन की खिड़कियों पर ठठेरा टांग दिया जाता है. यात्रियों को इससे काफी परेशानी होती है.

By ThakurShaktilochan Sandilya | June 11, 2025 12:07 PM
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Bihar News: सहरसा -मानसी रेलखंड से एक रोचक तस्वीर समने आई हैं.इन दिनों हर रोज समस्तीपुर-सहरसा पैसेंजर ट्रेन ठठेरा ट्रेन में तब्दील हो जाता है. ट्रेन नंबर 55566 समस्तीपुर-सहरसा पैसेंजर की कुछ तस्वीरें सामने आयी हैं. किस तरह पैसेंजर ट्रेन की खिड़कियों पर कब्जा जमाकर उसपर ठठेरा लटका दिया जाता है. ट्रेन से सफर करने वाले यात्रियों को इससे काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है.

ट्रेन की खिड़कियों पर लटका ठठेरा

इन दिनों इस ट्रेन की लगभग सभी खिड़कियों पर ठठेरा ही लटका हुआ नजर आता है. यह दृश्य रेल यात्रियों और रेलवे कर्मचारियों के लिए भी आम हो चला है.हालांकि यह प्रक्रिया जोखिम से भी खाली नहीं है. ट्रेन की खिड़कियों में ठठेरा लटकाना न केवल खतरनाक होता है बल्कि इससे यात्रियों को भी परेशानी होती है.बावजूद इसके, बीते कई वर्षों से यह चली आ रही है और स्थानीय प्रशासन भी इसे नजरअंदाज करता आ रहा है.

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महिलाएं ठठेरा लेने जाती हैं धमारा घाट स्टेशन

बताया जाता हैं की रेलखंड के विभिन्न स्टेशन की महिलाएं हर रोज 05509 सहरसा-जमालपुर पैसेंजर ट्रेन से सुबह-सुबह धमारा घाट स्टेशन पहुंचती हैं, ये महिलाएं धमारा के आसपास के गांवों से ठठेरा जमा करके समस्तीपुर-सहरसा पैसेंजर ट्रेन से लौट जाती हैं.

क्या है ठठेरे का काम?

ग्रामीण इलाकों में ठठेरा की अहमियत बहुत ज्यादा होती है.यह एक प्रकार का सूखा जलावन होता है, जो खेतों से काटकर लाया जाता है.गरीब और निम्न आय वर्ग के परिवारों के लिए यह ठठेरा कई तरह से उपयोगी होता है. इससे खाना पकाया जाता है और मवेशियों को चारा के रूप में भी इसे दिया जाता है. कई बार इसकी बिक्री से कुछ पैसे भी जुटा लिए जाते हैं.

खेत खाली होने पर टोली बनाकर जाती हैं महिलाएं

हर साल गर्मी के इन महीनों में जब खेत खाली होते हैं और जलावन की जरूरत बढ़ जाती है, तो महिलाएं टोली बनाकर ठठेरा लेने धमारा घाट की ओर पहुंच जाती हैं.

क्या कहती है महिलाएं

धमारा घाट से ठठेरा लाने वाली महिलाओं का कहना है कि अगर वे ऐसा न करें तो उनके घर में चूल्हा जलना मुश्किल हो जाएगा. महंगाई के इस दौर में एलपीजी गैस की कीमतें आम लोगों की पहुंच से बाहर हैं, ऐसे में यह सूखा जलावन ही उनका एकमात्र सहारा है.

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