लावारिस शवों की पहचान हो रही मुश्किल
खुले में रखा शव घंटों में देने लगती है बदबू, नाक पर रुमाल बांधना लोगों की बन जाती है मजबूरी
थाना परिसर की हालत ऐसी हो जाती है कि फरियादी नाक पर रुमाल बांधकर अपनी शिकायत दर्ज कराने आते हैं. स्थिति तब और बिगड़ जाती है जब शव तीन से चार दिनों तक पहचान की प्रतीक्षा में बिना किसी संरक्षण के खुले में पड़ा रहता है. गर्मी के मौसम में तो यह बदबू एवं सड़न बहुत तेजी से फैलती है. जिससे स्थानीय लोग भी परेशान रहते हैं. पुलिसकर्मी इस स्थिति से निजात पाने के लिए कई बार शव को जल्दबाजी में दफना देते हैं. जिससे कई बार संभावित परिजन शव की सही पहचान तक नहीं कर पाते हैं. इससे ना केवल मानवाधिकारों का हनन होता है. बल्कि मृतक के परिजनों को भी अपने प्रियजन का अंतिम दर्शन तक नसीब नहीं हो पाता है.
अत्याधुनिक मुर्दाघर की है जरूरत
सदर अस्पताल जैसे बड़े संस्थान में एक अत्याधुनिक मुर्दाघर की आवश्यकता नितांत जरूरी है. जिससे शवों को उचित तापमान पर सुरक्षित रखकर उनकी पहचान के लिए पर्याप्त समय मिल सके. साथ ही पोस्टमार्टम जैसी कानूनी प्रक्रिया भी व्यवस्थित एवं सम्मानजनक ढंग से पूरी की जा सके. लोगों का कहना है कि राज्य सरकार को स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से तुरंत इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए. सदर अस्पताल परिसर में ही एक पूर्ण रूप से सुसज्जित मुर्दाघर बना दिया जाय तो ना केवल प्रशासन को राहत मिलेगी. बल्कि आम नागरिकों को भी इस दुर्गंध एवं असुविधा से मुक्ति मिलेगी. समाज के प्रति सरकार की जवाबदेही बनती है कि वह ऐसी बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी नहीं करे. जो ना केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य बल्कि मानवीय संवेदनाओं से भी जुड़ी हैं.
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