Samastipur News: मोरवा : एक जमाने में अंग्रेजों के जल मार्ग के रूप में विख्यात प्रखंड क्षेत्र की कई नदी आज अस्तित्व खो चुकी है. कभी इस मार्ग से अंग्रेजों के द्वारा माल विदेशों को भेजा जाता था. लोगों के लिए यह आजीविका का साधन था. किसानों के लिए पटवन की समस्या नहीं थी. नदी के किनारे खेती करने वालों किसानों के लिए यह वरदान हुआ करता था. लेकिन यह सब धूल में समा गया. जिस जगह पर गर्मी के दिनों में भी भीषण जलजमाव हुआ करता था वहां आज धूल उड़ रही है. मवेशियों को भी पीने के पानी नसीब नहीं हो रहे हैं. किसान इस नदी में खेती कर रहे हैं. इसे विडंबना ही कहा जाये की आजादी के बाद किसी जनप्रतिनिधियों ने इसकी सुधि लेना मुनासिब नहीं समझा. नतीजा यह हुआ कि सारे के सारे जलाशय सूख गये. लोग उसका नाम भी भूलने लगे हैं. बताया जाता है कि अंग्रेज के जमाने में वैशाली जिले से निकलने वाली नून नदी, संनहत, मोहना, कठौतिया आदि मार्ग से गुजरते हुए सीधे बाया नदी में इसका संपर्क था. वैशाली जिले से अंग्रेजों द्वारा तंबाकू, दलहन और अन्य फसलों की ढुलाई इन्हीं जल मार्गों से की जाती थी. इन जलाशय में बड़ी पैमाने पर सालों भर मछलियों का बड़ा उत्पादन होता था. यहां की मछलियां जल मार्ग के जरिए विदेश भेजी जाती थी. मछली को सुखाकर मछुआरे अच्छी आमदनी करते थे. लेकिन इसकी देखभाल नहीं होने के कारण संनहत, मोहना, कठौतिया, नून नदी आदि दम तोड़ रही है. बीच नदी में मवेशी पानी के लिए तरस रहे हैं. किसान अपनी खेतों में पटवन के लिए बोरिंग का सहारा ले रहा हैं. ऐसे में लोगों की निगाहें उन रहनुमाओं पर लगी है.
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