Sitamarhi news: ट्रैक्टर के युग में 1.90 लाख में बिका बैल का जोड़ा

एशिया के प्रसिद्ध पशु मेलों में शुमार सीतामढ़ी के चैत्र रामनवमी मेला धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है. इस मेले की खास बात यह रही कि ट्रैक्टर के आधुनिक युग में भी किसानों का पशु प्रेम कम नहीं हो रहा है.

By VINAY PANDEY | April 5, 2025 10:25 PM
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सीतामढ़ी. एशिया के प्रसिद्ध पशु मेलों में शुमार सीतामढ़ी के चैत्र रामनवमी मेला धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है. इस मेले की खास बात यह रही कि ट्रैक्टर के आधुनिक युग में भी किसानों का पशु प्रेम कम नहीं हो रहा है. इस मेला क्षेत्र में सबसे अधिक दाम पर बैल का एक जोड़ा बिका, वह भी पूरे 1.90 लाख में. सबसे कम कीमत की बैल 30 हजार में बिका. हालांकि अन्य मवेशी मेला क्षेत्र में नहीं दिखे. पशुओं की खरीदारी करने आए शिवहर जिले के पोखरभिंडा गांव के मुन्नीलाल सहनी, बेलसंड के जितेंद्र प्रसाद और सोनबरसा के अखिलेश सिंह जैसे किसानों ने मेले में पशुओं की कम संख्या पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि मेले में जितने पशु दिख रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा तो पहले सड़कों पर नजर आते थे. किसानों ने पशुओं के रखरखाव में आने वाले अधिक खर्च को भी एक कारण बताया. 1.90 लाख में बैल खरीदने वाले किसान जीतन सिंह ने कहा कि ट्रैक्टर अपनी जगह है, लेकिन बैल का महत्व कम नहीं है. अभी रीगा चीनी मिल चालू हुआ है, जहां ईंख की ढुलाई में बैलगाड़ी की मांग बढ़ गयी है. ट्रैक्टर का मेंटेनेंस हर किसी के बुते की बात नहीं है. किसान हरकिरत राय, बुधन राय, बासुकी राउत ने बताया कि पहले वे खेतों की जुताई के लिए बैलों पर निर्भर रहते थे, लेकिन अब ट्रैक्टर का उपयोग अधिक होने लगा है. इस बदलाव का सीधा असर मेले पर दिख रहा है, जो कभी 15 दिनों तक चलता था, वह अब महज सात दिनों में सिमटता नजर आ रहा है. मालूम हो कि इस वर्ष मेले की शुरुआत दो अप्रैल को हुई है और यह आठ अप्रैल को समाप्त हो जाएगा.

रामनवमी के अवसर पर हर साल शहर के मेला रोड रिंग बांध के पश्चिम में लगने वाला ऐतिहासिक पशु मेला इस वर्ष संकट के दौर से गुजर रहा है. कभी एशिया के प्रसिद्ध पशु मेलों में शुमार यह मेला अब धीरे-धीरे समाप्ति की ओर अग्रसर है. एक समय था जब इस मेले में बिहार, झारखंड, यूपी, हरियाणा, पंजाब और पड़ोसी देश नेपाल से किसान बड़ी संख्या में बैल, गाय, हाथी, घोड़े और अन्य मवेशियों की खरीद-बिक्री के लिए आते थे. मेले में नाच-गाने, सर्कस और विभिन्न प्रकार के खानपान की दुकानें गुलजार रहती थी. हालांकि, इस वर्ष मेले में न तो पहले जैसा उत्साह दिखायी दे रहा है और न ही वैसी भीड़ नजर आ रही है. स्थानीय निवासी मनोज कुमार और संतोष कुमार ने बताया कि कभी डेढ़ से दो किलोमीटर के क्षेत्र में विस्तृत यह पशु मेला अब सिमटता जा रहा है. मेले में पहले जैसी रौनक नहीं रही. ऐतिहासिक महत्व रखने वाले इस पशु मेले की घटती लोकप्रियता निश्चित रूप से चिंता का विषय है और इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि इसकी पहचान और महत्व को बनाए रखा जा सके.

किसानों ने प्रशासनिक व्यवस्था को लेकर भी नाराजगी जतायी. उन्होंने बताया कि बुधवार से मेले की शुरुआत हुई, लेकिन प्रशासन द्वारा शौचालयों की व्यवस्था नहीं की गयी थी. नगर निगम द्वारा शनिवार को चलंत शौचालय की व्यवस्था की गयी. पेयजल के लिए केवल एक टैंकर लगाया गया है, वहीं, सुरक्षा के नाम पर केवल दो चौकीदार तैनात किए गए हैं.

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