परिहार. रमजान के पूरे महीने में रोजे रखने, रात की तरावीह पढ़ने और अल्लाह की इबादत (पूजा) में मशगूल (व्यस्त) रहने की खुशी में ईद मनाई जाती है. मौलाना शौकत अली मिस्बाही बताते हैं रोजेदारों के लिए ईद अल्लाह की तरफ से मिलने वाले तोहफा माना जाता है. माह-ए-रमजान मुकम्मल होने की खुशी में मुसलमान हर साल ईद मनाते हैं. ईद मनाने की शुरुआत पहली बार 2 हिजरी यानी 624 ईस्वी में हुई थी. 624 ईस्वी में पैगंबर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थी और अपनी जीत की खुशी में उन्होंने लोगों का मुंह मीठा करवाया था. तभी से ही ईद-उल-फितर की शुरुआत पैगंबर मुहम्मद ने मक्का छोड़ने के बाद मदीना में हुई. सिर्फ खुशी मनाना ही ईद का मतलब नहीं होता है, बल्कि ईद का मतलब दूसरों के साथ खुशियां बांटना भी है. ईद के दिन मुसलमान गरीबों और जरूरतमंदों को ‘फितरा’ (दान) देते हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि फितरा क्या होता है, तो इसका जबाव है कि इस्लाम में फितरा एक तरह का दान है जिसे ‘सदका-ए-फित्र’ भी कहा जाता है. फितरा ईद की नमाज से पहले अदा करना जरूरी होता है. फितरा, गरीब रिश्तेदारों, जरूरतमंदों, बेवाओं और अनाथों को दिया जाता है. फितरा में कोई सीमा नहीं होती है यानी अपनी हैसियत के मुताबिक फितरा दिया जा सकता है. रमजान के पाक महीने में हर मुसलमान अल्लाह पाक बेहद करीब रहता है. अल्लाह के करीब रहने और अल्लाह की रहमत पाने के लिए रमजान के दौरान पांचों वक्त की नमाज और तरावीह की अदा की जाती है. रमजान में अल्लाह की रहमत पाने और अपने गुनाहों की माफी के लिए मुसलमान नमाज अदा करते हैं. वहीं, ईद के मौके पर नमाज अदा कर अल्लाह की शुक्रिया अदा किया जाता है. माह-ए-रमजान की फजीलतों, इसमें की गई इबादत और रोजे का शुक्राना अदा करने के लिए मुसलमान ईद का नमाज पढ़ते हैं. ईद की नमाज हर मुसलमान, खासकर मर्दों के लिए वाजिब यानी जरूरी होती है. इसे मस्जिदों या ईदगाह में जमात के साथ पढ़ा जाता है, जिससे समाज में एकता और भाईचारे का पैगाम मिलता है. इस नमाज की खासियत ये है कि ईद की नमाज दो रकात में अदा की जाती है. ईद की नमाज अल्लाह की रहमत और बरकत हासिल कर अल्लाह का शुक्रिया अदा करने का एक जरिया है. सोमवार को ईद के नमाज के बाद एक- दूसरे को गले मिल कर मुबारकबाद देते हुए मीठी सेवई खिलाई. बाक्स में:-
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