पुपरी. कृषि विज्ञान केंद्र बलहा मकसूदन सीतामढ़ी के प्रशिक्षण सभागार में बेहतर आम की खेती आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की गई. कार्यक्रम का उद्घाटन केंद्र के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान डॉ राम ईश्वर प्रसाद एवं आत्मा सीतामढ़ी के उप परियोजना निदेशक रजनीकांत भारती ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया. डॉ प्रसाद ने बताया कि सीतामढ़ी जिले में फल उत्पादन में आम की खेती सबसे अधिक होती है. बावजूद इसके बेहतर प्रबंधन नहीं होने के कारण उत्पादन प्रभावित हो रहा है. इसके लिए बेहतर प्रबंधन जैसे समेकित पोषण प्रबंधन, ट्रेनिंग, प्रूनिंग, वृद्धि नियामक का प्रयोग, सिंचाई प्रबंधन काफी आवश्यक है. वैज्ञानिक तरीके से पोषण प्रबंधन न होने के कारण आम की कुछ प्रजातियां जैसे मालदाह, बम्बई, कृष्णभोग इत्यादि में एकांतरण फलन की समस्या आ रही है. लिहाजा बगीचे की मिट्टी जांच काफी आवश्यक है. ताकि बगीचे में संतुलित पोषण प्रबंधन हो सके. आत्मा सीतामढ़ी के परियोजना निदेशक रजनीकांत भारती ने बताया कि जो किसान नया बाग की स्थापना हेतु गड्डे की खुदाई कर चुके हैं. वे प्रति गड्डे 25 किलोग्राम सड़ी गोबर, 500 ग्राम सिंगल सुपर फोसफेट, 250 ग्राम मयूरेट ऑफ़ पोटाश, 2 किलोग्राम नीम खल्ली एवं 50 ग्राम फयुरादान को मिट्टी में मिलाकर गड्डे को भर दें. मानसून आने पर पौधों की रोपाई करने से पौधों की वृद्धि बेहतर होती है. सहायक निदेशक, रसायन, अनिल कुमार ने बेहतर मिट्टी बनाये रखने हेतु विभिन्न जानकारी जैसे मिट्टी जांच एवं समेकित पोषण प्रबंधन की जानकारी विस्तार पूर्वक से दिया. उद्यान वैज्ञानिक मनोहर पंजीकार, पशु चिकित्सा वैज्ञानिक डॉ किंकर कुमार, सस्य वैज्ञानिक सच्चिदानंद प्रसाद एवं पादप रक्षा वैज्ञानिक डॉ श्रीति मोसेस ने बताया कि आम के बगीचे में बेहतर फलन एवं हर वर्ष फल आने हेतु पोषण प्रबंधन एवं वृद्धि नियामक जैसे प्लानोफिक्स, पोटाशियम नितराते, पैकलोब्यूतराज़ॉल का प्रयोग काफी आवश्यक है. पंजीकार ने बताया कि 30 वर्ष से अधिक उम्र वाले आम के बगीचे में उत्पादन काफी कम होता है. इसके लिए बगीचे का जीर्णोद्धार सितंबर -अक्टूबर के महीने में करने से पुनः उत्पादन में वृद्धि हो जाती है. बताया कि बागवानी को बढ़ावा देने हेतु सरकार की कई योजनाएं चल रही है. जिसका लाभ किसान ले सकते हैं. आम के बगीचे में फूल आने से पहले से लेकर फल तुड़ाई तक विभिन्न प्रकार के रोगों एवं कीड़े का संक्रमण होता है. इसके लिए समेकित कीट एवं रोग प्रबंधन की जरूरत है. इसके तहत प्राकृतिक कीटनाशक का प्रयोग, फेरोमेन ट्रैप का प्रयोग, नीम आधारित कीटनाशक का प्रयोग काफी लाभकारी होता है. मौके पर जिले के विभिन्न प्रखंडो से नागेंद्र प्रसाद सिंह, डॉ शांकरण, राजीव कर्ण, मुकेश कुमार, रविनंदन ठाकुर, जितेंद्र राय समेत दर्जनों किसानों ने भाग लिया.
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