सीतामढ़ी. कल पूरे मिथिला क्षेत्र में सुहागिन स्त्रियों द्वारा वट सावित्री का व्रत एवं पूजन किया जायेगा. पंडित कृष्ण कुमार झा के अनुसार, ज्येष्ठ अमावस्या के दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिये व्रत रखती हैं. इस व्रत को वट सावित्री के नाम से जाना जाता है. ब्राह्मण, कायस्थ व अन्य समाज की महिलायें जेष्ठ अमावस्या को वट सावित्री का व्रत रखकर पूजा करती हैं. वहीं, कई अन्य वर्ग की महिलायें इस व्रत को ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन रखती हैं. इस दिन बरगद के पेड़ की पारंपरिक रीति से पूजा की जाती है. मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान है. व्रत रखने वाली महिलायें सावित्री और सत्यवान की पवित्र कथा को सुनती हैं. — वट सावित्री व्रत की कथा वट सावित्री व्रत कथा यह है कि सावित्री के पति सत्यवान अल्पायु थे. सावित्री से प्रसन्न होकर एक दिन देव ऋषि नारद वहां आये. सावित्री ने पति की लंबी आयु का वर मांगा. नारद जी ने सावित्री को बताया कि उनके पति अल्पायु हैं. वे कोई दूसरा वर मांग लें. पर सावित्री ने कहा कि वे एक हिंदू नारी हैं और हिंदू नारी पति को एक ही बार चुनती हैं. उसी समय सत्यवान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी. सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति के सिर को रखकर लेटा दिया. सावित्री ने देखा कि अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे हैं. सत्यवान के प्राण को दक्षिण दिशा की ओर ले जा रहे हैं. यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती हैं. उन्हें अपने पीछे आता देख यमराज ने सावित्री से कहा कि हे पतिव्रता नारी, पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती हैं. अब तुम वापस लौट जाओ. उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा कि जहां उनके पति रहेंगे, उन्हें भी उन्हीं के साथ रहना है. यही उनका पत्नी धर्म है. सावित्री के मुख से यह उत्तर सुन कर यमराज बड़े प्रसन्न हुए और सावित्री को वर मांगने को कहा. यमराज ने सावित्री से तीन वरदान मांगने को कहा. तब सावित्री ने सास-ससुर के लिये नेत्र ज्योति, ससुर का खोया हुआ राज्य और पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा. यमराज ने तथास्तु कहकर तीनों वरदान प्रदान किया. सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौट आयी, जहां सत्यवान मृत पड़ा था. सत्यवान फिर से जीवित हो गया. इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को फिर से जीवित करवाया, बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति और ससुर को खोया राज्य फिर से दिलवाया. मान्यता है कि तभी से ज्येष्ठ अमावस्या व वट सावित्री पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर सुहागिन स्त्रियां वट वृक्ष की पूजा-अर्चना करती हैं.
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