चाईबासा. आदिवासी उरांव समाज की एक महत्वपूर्ण बैठक शनिवार को चाईबासा के पुलहातु स्थित कुड़ुख समुदाय भवन में हुई. इसकी अध्यक्षता समाज के अध्यक्ष संचू तिर्की ने की. आगामी 13 मई को ज्येष्ठ जतरा पर्व को भव्य व सांस्कृतिक गरिमा के साथ मनाने का निर्णय हुआ. बैठक में जतरा पर्व के लिए विभिन्न समितियों के गठन, पारंपरिक वेशभूषा की व्यवस्था, सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रूपरेखा और प्रचार-प्रसार की रणनीतियों पर चर्चा हुई. जतरा पर्व समाज की अस्मिता, गौरव और वीरता का प्रतीक : लकड़ा सचिव अनिल लकड़ा ने कहा कि जतरा पर्व उरांव समुदाय की अस्मिता, गौरव और वीरता का प्रतीक है. यह त्योहार जेठ कृष्ण पक्ष को मनाया जाता है. बैशाख पूर्णिमा की रात्रि यानी 12 मई (सोमवार) को सामूहिक जागरण होगा. मौके पर धार्मिक अनुष्ठान, गीत-संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे. उन्होंने कहा कि यह पर्व हमारे समाज का गौरवशाली इतिहास है. हजारों वर्ष पूर्व विदेशी आक्रांताओं ने अनार्य वंशज उरांव समुदायों पर आक्रमण कर रोहतासगढ़ किले को हड़पने का प्रयास किया. हमारे समाज की वीरांगनाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर तीन बार दुश्मनों से युद्ध लड़ा. तीनों बार उन्हें परास्त किया. यह विजयगाथा आज भी उरांव समाज की प्रेरणा है. इसी जीत की याद में हमारे पारंपरिक नीले झंडे पर तीन लकीरें बनायी जाती हैं. यह त्रैविक विजय के प्रतीक हैं. समाज को जोड़ने वाला पर्व है जतरा : संचु समाज के अध्यक्ष संचू तिर्की और मुख्य सलाहकार सहदेव किस्पोट्टा ने कहा कि जतरा पर्व हमारी सांस्कृतिक धरोहर है. यह समाज को एकसूत्र में बांधता है. बैठक में बाबूलाल बरहा, लालू कुजूर, दुर्गा खलखो, किरण नुनिया समेत सदस्य शामिल हुए.
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