
गुमला. गुमला प्रखंड के डुमरडीह गांव में पारंपरिक श्रद्धा व सामाजिक एकता का प्रतीक पड़हा जतरा धूमधाम से मनाया गया. इस आयोजन में कई गांवों के लोग शामिल हुए. सबसे पहले डुमरडीह मौजा के ग्रामीणों और पहान मंगरा उरांव ने पारंपरिक विधि से पूजा-अर्चना कर गांव की सुख-समृद्धि और अच्छी फसल की कामना की. अतिथियों का स्वागत पारंपरिक वाद्य यंत्रों ढोल, मांदर और नगाड़ा के साथ किया गया और मंच तक लाया गया. पड़हा व्यवस्था की सामाजिक भूमिका पर प्रकाश डालते हुए मूली पड़हा के दीवान चुंइया कुजूर ने कहा कि यह 12 जाति और 36 कोम को संगठित करने वाली पुरखों की अजर-अमर व्यवस्था है. पूर्व बेल राजबेल ने कहा कि अब पढ़े-लिखे और शहरों में रहने वाले लोग भी पुरखों द्वारा बनाये गये रास्ते यानी पड़हा डहर पर चलें. मूली पड़हा के कोटवार देवेंद्र लाल उरांव ने कहा कि जैसे सरहुल की शोभायात्रा हमारी सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है, वैसे पड़हा हमारी सामाजिक और धार्मिक जड़ों की सुरक्षा की भावना को मजबूत करता है. संकट की घड़ी में हमें एकजुट और तैयार रहना होगा, ताकि हमारी धार्मिक जमीन सरना, मसना, कदलेटा जतरा डाड़ सुरक्षित रह सके. बेल देवराम भगत ने सुझाव दिया कि गांव-गांव में अतखा पड़हा का गठन हो. गुरुवार को बैठक कर पूजा की जाये, एक मुट्ठी चावल और एक रुपये दान कर समाज की सुख-दुख की चर्चा की जाये. इससे समाज संगठित और मजबूत होगा. पादा पड़हा झारखंड के दीवान विश्वनाथ ने बताया कि पहले गांवों के झगड़ों का निबटारा पड़हा के माध्यम से होता था और आज भी यह व्यवस्था न्यायिक रूप से कार्य करती है. कार्यक्रम का संचालन फिरू भगत ने किया. कार्यक्रम में पूर्व दीवान राजू उरांव, उप दीवान सोनो मिंज, रकम उर्वश, गौरी किंडो, उप कहतो फूलमनी उरांव, पुष्पा उरांव, परामर्शदात्री सदस्य शांति मिंज और शांति देवी, पड़हा प्रेमी फौदा उरांव और सुदर्शन भगत समेत कई लोग मौजूद थे.
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