निकली प्रभु जगन्नाथ की ऐतिहासिक रथ यात्रा, उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़
Rath Yatra: लातेहार जिले में शहर के ठीक बीचों बीच मेन रोड में ठाकुरबाड़ी से आज भव्य रथ यात्रा निकाली गयी. इस दौरान रथ खींचने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी. मान्यता है कि रथ यात्रा का साक्षात दर्शन करने भर से ही 1000 यज्ञों का पुण्य फल मिलता है.
By Dipali Kumari | June 27, 2025 4:39 PM
Rath Yatra | लातेहार, चंद्र प्रकाश सिंह: लातेहार जिले में शहर के ठीक बीचों बीच मेन रोड में ठाकुरबाड़ी से आज रथ यात्रा निकाली गयी. इस दौरान रथ खींचने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी. ठाकुरबाड़ी से रथ खींच कर शहर का भ्रमण कराया गया. इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था के भी पुख्ता इंतजाम किये गये. मौके पर एसडीपीओ अरविंद कुमार खुद पुलिस बल के साथ तैनात रहें.
रथ यात्रा के दर्शन मात्र से मिलता है पुण्य
मंदिर समिति के संरक्षक योगेश्वर प्रसाद सपत्नीक ने भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर तीनों विग्रहों को रथ पर विराजमान किया. इसके बाद श्रद्धालुओं ने पूरी आस्था से रथ को खींचा और शहर का भ्रमण कराया. मान्यता है कि रथ यात्रा का साक्षात दर्शन करने भर से ही 1000 यज्ञों का पुण्य फल मिलता है.
लातेहार में 191 सालों से निकाली जा रही है रथ यात्रा
लातेहार मे पिछले 191 सालों से लातेहार में भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम की रथ यात्रा निकाली जा रही है. बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि पहली बार साल 1833 में लातेहार के बाजारटांड़ के प्राचीन शिव मंदिर परिसर से रथ यात्रा निकली थी. प्राचीन शिव मंदिर के पुजारी मनोज दास शर्मा ने बताया कि उनके पूर्वज महंत पूरनदास जी महाराज ने 1833 में प्राचीन शिव मंदिर से रथ यात्रा की शुरूआत की थी. प्राचीन शिव मंदिर का इतिहास 200 वर्षों से भी पुराना है. उस जमाने से बाजारटांड़ में साप्ताहिक बाजार लगता है. इसी दौरान बाजारटांड़ से रथ यात्रा निकालने की परंपरा शुरू की गयी.
महंत जी के निधन के बाद उनके वंशजों ने संभाली जिम्मेवारी
महंत पूरन दास जी के निधन के बाद उनके वंशज महंत शरण दास, महंत जनक दास, महंत यदुवंशी दास ने रथ यात्रा निकालने की जिम्मेवारी संभाली. पुजारी मनोज दास ने आगे बताया कि साल 1994 तक बाजारटांड़ परिसर से ही रथ यात्रा निकाली गयी. लेकिन, शहर के ठीक बीचों-बीच मेन रोड में अवस्थित ठाकुरबाड़ी का साल 1995 में जीर्णोद्धार किया गया. उसके बाद से रथ यात्रा यहां से निकाली जाने लगी.
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