अंग्रेजों की यातनाएं सहने वाले वाचस्पति तिवारी ने आजादी के बाद संताल परगना में जलाई शिक्षा की अलख

Vachaspati Tiwari: छात्र जीवन से ही वाचस्पति तिवारी के मन में देश प्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी थी. ब्रिटिश हुकूमत में देश के लोगों पर हो रहे अत्याचार के बारे में सुनकर उनका मन उद्वेलित हो उठता था. वर्ष 1935 में उनका विवाह द्रौपदी देवी से हुआ.

By Mithilesh Jha | January 26, 2025 1:10 PM
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Vachaspati Tiwari: देश 26 जनवरी 2025 को गणतंत्र दिवस की 75वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. यह अवसर उन वीर-सपूतों की वीरगाथा को याद करने का भी है, जिन्होंने भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया, अपने प्राण न्योछावर कर दिए. अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करने वाले आजादी के दीवानों में कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी भी हुए, जिन्होंने आजादी के बाद देश में शिक्षा की अलख जगाई. झारखंड (तब बिहार) के संताल परगना के वाचस्पति तिवारी ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लगातार संघर्ष किया. महात्मा गांधी के अनन्य भक्त वाचस्पति तिवारी ने आजादी के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. संताल परगना में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया. अंग्रेजों की यातनाएं सहीं, लेकिन उसके आगे झुके नहीं. कभी हार नहीं मानी.

महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन में हुए सक्रिय

छात्र जीवन से ही वाचस्पति तिवारी के मन में देश प्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी थी. ब्रिटिश हुकूमत में देश के लोगों पर हो रहे अत्याचार के बारे में सुनकर उनका मन उद्वेलित हो उठता था. वर्ष 1935 में उनका विवाह द्रौपदी देवी से हुआ. 2 पुत्री और एक पुत्र के जन्म के बाद भी वे आजादी की लड़ाई में सक्रिय थे. महात्मा गांधी के आह्वान पर अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय रहे थे. वह हमेशा सोचते रहते थे कि अंग्रेजों को भारत से कैसे भगाया जाए. वाचस्पति तिवारी ने 9 अगस्त 1942 को शराब भट्ठी में आग लगाकर भट्ठी को तहस-नहस कर दिया. हालांकि, ब्रिटिश सेना ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. तब उनके पुत्र शारदा प्रसाद तिवारी एक साल के थे.

रास्ते पर ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते रहे वाचस्पति तिवारी

वाचस्पति तिवारी को महेशपुरराज थाना ले जाया गया. रास्ते में वह लगातार भारत माता की जय के नारे लगाते रहे. 2 दिन हाजत में रखकर उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दी गईं. फिर उन्हें पाकुड़ कारा भेज दिया गया. यहां भी उन्हें प्रताड़ित किया गया, लेकिन वे विचलित नहीं हुए. पाकुड़ से एक सप्ताह बाद पटना सेंट्रल जेल भेज दिया गया. संताल परगना के सभी कैदियों को जेल में एक ही जगह रखा गया था. दुमका के स्वतंत्रता सेनानी लाल हेम्ब्रम भी वहीं थे. अगस्त 1942 से अप्रैल 1943 तक पटना सेंट्रल जेल में रहे. अप्रैल 1943 में स्वतंत्रता सेनानियों को जेल से रिहा कर दिया गया.

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आजादी के बाद संताल परगना में शिक्षा की अलख जगाने की ठानी

जेल से रिहा होने के बाद वाचस्पति तिवारी गोपालपुर (अब बांग्लादेश में) के चीनी मिल के उच्च विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गये. 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया. देश के आजाद होने के तुरंत बाद भारत का विभाजन हो गया. भारत और पाकिस्तान बनने के बाद वे कभी गोपालपुर नहीं गये. उस समय संताल परगना में शिक्षा का घोर अभाव था. इन्होंने ठान लिया कि इस पिछड़े इलाके में शिक्षा की अलख जगाएंगे.

वाचस्पति तिवारी के पढ़ाये 2 छात्र बने आईएएस अधिकारी

उस समय पाकुड़ राज एवं संताल परगना दुमका जिला मुख्यालय, जिसकी दूरी 100 किलोमीटर थी के बीच एक भी उच्च विद्यालय नहीं था. वाचस्पति तिवारी ने वर्ष 1949 में 10 विद्यार्थियों के साथ अपने गांव देवीनगर एवं आमड़ापाड़ा उच्च विद्यालय की स्थापना की. वाचस्पति तिवारी के पढ़ाये 2 छात्र भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी भी बने. देश जब स्वतंत्रता के 25वें वर्ष का जश्न मना रहा था, तब 15 अगस्त 1972 को स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें ताम्र पत्र भेंट किया था.

वाचस्पति तिवारी का सिद्धांत- Duty First and Self Last

स्वतंत्रता सेनानी घोषित होने पर उन्हें प्रशस्ति पत्र एवं स्वतंत्रता सेनानी पेंशन के रूप में प्रति माह 200 रुपये मिलने लगे. जून 1976 में ये आमड़ापाड़ा उच्च विद्यालय से सेवानिवृत्त हुए. इनका सिद्धांत था- ‘Duty First and Self Last’. वाचस्पति तिवारी का जन्म 20 अक्टूबर 1913 को संताल परगना जिला के महेशपुरराज प्रखंड के देवीनगर गांव में हुआ था. उनकी शुरुआती शिक्षा घर पर ही हुई. बाद में वे पढ़ने के लिए पाकुड़ के राज हाई स्कूल चले गए. यहीं से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी.

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