Dragon Fruit Cultivation: सरायकेला-खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश-झारखंड के सरायकेला प्रखंड के एक छोटे से गांव बाराबाना के किसान सतीश देवगम पारंपरिक खेती से हटकर अब ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं. इससे उनकी किस्मत बदल गयी है. सतीश देवगम पहले पारंपरिक खेती करते थे, लेकिन अच्छी उपज नहीं होने के कारण उन्हें अच्छी आमदनी भी नहीं हो रही थी. आधुनिक कृषि तकनीक की जानकारी का अभाव और मौसम की मार ने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया था, लेकिन सतीश ने हार नहीं मानी. उन्होंने वैकल्पिक खेती के रूप में ड्रैगन फ्रूट को चुना और ड्रैगन फ्रूट ने उनकी जिंदगी बदल दी.
शुरुआत कठिन थी, लेकिन जज्बा था बुलंद
कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण (ATMA) के सहयोग से उन्होंने मृदा परीक्षण, सॉयल हेल्थ कार्ड का उपयोग, कुशल सिंचाई विधियों का क्रियान्वयन और अद्यतन फसल प्रबंधन तकनीकों को अपनाया. सतीश ने खुद ही खेत में ड्रिप सिंचाई प्रणाली बांस से सहारे लगाई. हर पौधे को रोज समय दिया. बुलंद जज्बे से उन्होंने अपनी तकदीर बदल दी.
पहली फसल से 1.5 लाख की कमाई
पहली फसल जब आई, तो नजारा देखने लायक था. गुलाबी-लाल ड्रैगन फ्रूट देखते ही सतीश के चेहरे खिल उठे. पहली ही फसल से उन्हें करीब 1.5 लाख रुपए की आमदनी हुई. पारंपरिक फसलों से उन्हें साल में मुश्किल से 40-50 हजार मिलते थे. आज सतीश के खेत में 600 से अधिक पौधे हैं. वे हर साल लाखों की कमाई कर रहे हैं. बढ़ी हुई आय के कारण सतीश देवगम न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में सफल हुए, बल्कि वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दे रहे हैं.
अब कई युवा किसान कर रहे ड्रैगन फ्रूट की खेती
सतीश देवगम की पहल ने पूरी पंचायत को दिशा दी है. आज मुरकुम पंचायत के कई युवा किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत कर चुके हैं. सतीश अब केवल किसान नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक बन चुके हैं. पंचायत स्तर पर उन्हें कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है.
ड्रैगन फ्रूट की खासियत
कम पानी में फलता है. गर्म और सूखी जलवायु में बेहतर है. पांच साल तक फल देता है. एक पौधा साल में 20-25 फल देता है. बाजार में इसकी कीमत 100-150 रुपए किलो तक है.
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