Holi 2025: खास है सरायकेला की होली, भक्तों संग रंग-गुलाल खेलने घर-घर दस्तक देंगे राधा-कृष्ण

Holi 2025: सरायकेला-खरसावां जिले के सरायकेला की होली बेहद खास होती है. यहां भगवान कृष्ण स्वयं राधा के साथ होली खेलने के लिए निकलते हैं. भक्तों के घर-घर जाकर दस्तक देते हैं और उनके संग होली खेलते हैं.

By Mithilesh Jha | March 13, 2025 2:41 PM
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Holi 2025|सरायकेला-खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश/धीरज कुमार : झारखंड में सरायकेला-खरसावां जिले की होली का अलग रंग है. इसका अलग मिजाज है. सांस्कृतिक नगरी सरायकेला में होली की तैयारी पूरी हो चुकी है. यहां की होली अन्य जिलों और शहरों से कई मायने में अलग है. सरायकेला में होलिका दहन के दिन दोल यात्रा पर सरायकेला में भगवान श्रीकृष्ण राधा रानी के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं. हर घर दस्तक देकर भक्तों के साथ रंग-गुलाल खेलते हैं. ओड़िशा के पुरी की तर्ज पर यहां होली में राधा-कृष्ण की दोल यात्रा निकलती है. होली के दिन उत्कल की प्राचीन एवं समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा की झलक दिखती है. दोल यात्रा के दौरान कृष्ण-हनुमान मिलन और हरि-हर मिलन भी होता है, जो इस धार्मिक अनुष्ठान का महत्वपूर्ण हिस्सा है.

मृत्युंजय खास मंदिर से होगी दोल यात्रा की शुरुआत

जगन्नाथपुरी और वृंदावन की तर्ज पर यहां होलिका दहन (इस बार 13 मार्च 2025) के दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की दोल यात्रा की शुरुआत कंसारी टोला स्थित मृत्युंजय खास श्रीराधा कृष्ण मंदिर से शुरू होगी. 250 साल पुराने इस मंदिर में विधिपूर्वक राधा-कृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना होगी. इस दौरान राधा-कृष्ण की कांस्य प्रतिमाओं का भव्य शृंगार कर पालकी बैठाकर नगर भ्रमण कराया जायेगा. नगर भ्रमण के दौरान राधा रानी के साथ कान्हा हर घर में दस्तक देंगे और नगरवासियों के साथ गुलाल की होली खेलेंगे.

शंखध्वनि और उलुकध्वनि से होगा राधा-कृष्ण का स्वागत

दोल पूर्णिमा पर राधा-कृष्ण के नगर भ्रमण के दौरान भक्त पारंपरिक वाद्य यंत्र मृदंग, झाल, गिनी आदि के साथ दोल यात्रा में शामिल होंगे. इस दौरान हर घर में शंखध्वनि और उलुकध्वनि के साथ भगवान श्रीकृष्ण का स्वागत करेंगे. उनकी आरती उतारते हैं. राधा-कृष्ण के स्वागत के लिए श्रद्धालु अपने घर के सामने गोबर से लेपते हैं. अल्पना बनाते हैं. दोल यात्रा के दौरान इस वर्ष घोड़ा नाच एवं काठी नाच के साथ-साथ सनातनी एकता का प्रतीक बने महाकुंभ पर भी विशेष झांकी निकाली जायेगी.

महाराज उदित नारायण सिंहदेव के शासन काल में शुरू हुई दोल यात्रा

दोल यात्रा के मुख्य आयोजक सरायकेला के कवि ज्योति लाल साहू बताते हैं कि सरायकेला में दोल यात्रा की शुरुआत वर्ष 1818 में महाराजा उदित नारायण सिंहदेव के शासन काल में हुई थी. राजा-राजवाड़े के समय में इसका आयोजन फागू दशमी से दोल पूर्णिमा तक होता था. वर्ष 1990 से आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली संस्था द्वारा पारंपरिक रूप से दोल यात्रा का आयोजन हो रहा है. इसमें स्थानीय लोगों का भी सहयोग रहता है. वर्तमान में दोल यात्रा का आयोजन एक ही दिन दोल पूर्णिमा के दिन होता है.

दोले तू दोल गोविंदम, चापे तु मधुसूदनम, रथे तू मामन दृष्टा, पुनर्जन्म न विद्यते…

आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली, सरायकेला के संस्थापक ज्योतिलाल साहू कहते हैं कि ‘दोले तू दोल गोविंदम, चापे तू मधुसूदनम, रथे तू मामन दृष्टा, पुनर्जन्म न विद्यते…’ क्षेत्र में प्रचलित श्लोक है. इसका अर्थ यह है कि दोल (झूला या पालकी), रथ और नौका में प्रभु के दर्शन से मनुष्य को जन्म चक्र से मुक्ति मिलती है. इस वजह से दोल यात्रा के दौरान प्रभु का दर्शन दुर्लभ माना जाता है. दोल यात्रा एकमात्र ऐसा धार्मिक अनुष्ठान है, जब प्रभु अपने भक्त के साथ गुलाल खेलने के लिए उसकी चौखट तक पहुंचते हैं. इस क्षण का क्षेत्र के हर व्यक्ति को इंतजार रहता है. दोल यात्रा जगत के पालनहार कोटि ब्रह्मांडपति श्रीकृष्ण के द्वादश यात्राओं में से एक है.

राधा-कृष्ण के दर्शन से होती है मोक्ष की प्राप्ति : ज्योतिलाल साहू

आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली सरायकेला के संस्थापक ज्योतिलाल साहू कहते हैं कि आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली हर वर्ष दोल यात्रा का आयोजन करता है. राधा-कृष्ण विशेष विमान पर सवार होकर घर-घर दस्तक देते हैं. दोल यात्रा एक धार्मिक कार्यक्रम है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, दोल यात्रा के दौरान प्रभु राधा-कृष्ण के दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस वर्ष दोल यात्रा ऐतिहासिक होगा.

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