खरसावां : भाई बहन के साथ मौसी बाड़ी से श्रीमंदिर लौटे प्रभु जगन्नाथ, शंघध्वनी और भक्तों के समागम से संपन्न हुआ रथ यात्रा

खरसावां के ग्रामीण क्षेत्रों में भी बाहुड़ा रथ यात्रा का आयोजन किया गया. खरसावां के दलाईकेला, जोजोकुड़मा, पोटोबेडा, संतारी तथा कुचाई के बंदोलौहर, चाकड़ी, पोंडाकाटा में भी बाहुड़ा रथ यात्रा शांति पूर्वक संपन्न हो गया. इन स्थानों पर ही प्रभु जगन्नाथ रथ पर सवार हो कर गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर वापस लौटे.

By Kunal Kishore | July 15, 2024 8:58 PM
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खरसावां, शचींद्र कुमार दाश : धार्मिक नगरी खरसावां में भक्तों के समागम, जय जगन्नाथ की जयघोष, शंखध्वनी व पारंपरिक हुल-हुली के बीच सोमवार को भाई-बहन के साथ प्रभु जगन्नाथ अपने मौसी के घर गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर लौट आये. इसके साथ ही श्रद्धा व उल्लास के साथ इस वर्ष का रथ यात्रा उत्सव संपन्न हो गया. देर शाम प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा के प्रतिमाओं को रथ पर बैठा कर गुंडिचा मंदिर से खींच कर राजवाड़ी स्थित श्री मंदिर तक पहुंचाया. इस दौरान भक्तों के बीच प्रसाद के रुप में लड्ड फेंके गये, जिसे झपटने को भक्त आतुर दिखे. हर कोई प्रसाद पा कर व रथ को खींच कर स्वंय को धन्य समझ रहा था. श्री जगन्नाथ के वासपी रथ यात्र को बाहुड़ा यात्र कहा जाता है. प्रभु आठ दिनों तक मौसी के घर में रहने के बाद श्रीमंदिर वापस लौंटे. इस दौरान मुख्य रुप से खरसावां के राजा गोपालन नारायण सिंहदेव, राजपुरोहित अंबुजाख्य आचार्य, पं विमला षाडंगी, पुजारी राजाराम सतपथी, राकेश दाश आदि मौजूद रहे.

हरिभंजा में श्री जगन्नाथ रथ यात्रा सउल्लास संपन्न, गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर के सामने पहुंचे प्रभु जगन्नाथ

हरिभंजा में भक्तों के समागम, जय जगन्नाथ की जयघोष, शंखध्वनी व पारंपरिक हुल-हुली के बीच सोमवार को भाई-बहन के साथ प्रभु जगन्नाथ अपने मौसी के घर गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर लौट आये. इस दौरान सभी धार्मिक रश्म रिवाजों को निभाया गया. सोमवार को देर शाम चतुर्था मूर्ति प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र, देवी सुभद्रा व सुदर्शन की बाहुड़ा यात्रा निकाली गई. सैकडों भक्तों ने श्रद्धा व उत्साह के साथ भगवान जगन्नाथ के नंदीघोष को खींच कर गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर तक पहुंचाया. रथ पर ही चतुर्था मूर्ति की महाआरती उतारी गयी.

चतुर्था मूर्ति को चढ़ाया गया छप्पन भोग, निभायी गयी अधरपणा की रश्म

हरिभंजा में रथ पर महाप्रभु की आरती उतारने के साथ साथ अधरपणा व छप्पन भोग के रश्म को पूरा किया गया. साथ ही महाप्रभु को छप्पन भोग (56 प्रकार के मिष्टान्न भोग) का प्रसाद चढ़ाया गया. इसके बाद चतुर्था मूर्ति को रथ से श्री मंदिर पहुंचा ले गर्भ गृह में ले कर रत्न सिंहासन में आरुढ़ कर महाआरती की गयी. साथ ही भव्य श्रंगार किया गया. मौके पर प्रभु जगन्नाथ की ओर से मां लक्ष्मी को रसगुल्ला भेंट किया जाता है. बाहुड़ा रथ यात्रा के सभी धार्मिक रश्मों को मंदिर के मुख्य पुरोहित पं प्रदीप कुमार दाश, भरत त्रिपाठी समेत अन्य सेवायतों ने संपन्न कराया. मौके पर हरिभंजा के जमीनदार विद्या विनोद सिंहदेव, संजय सिंहदेव, राजेश सिंहदेव, पृथ्वीराज सिंहदेव आदि ने उपस्थित हो कर सभी धार्मिक रश्मों को निभाया.

एक साल बाद पुन: मंदिर से बाहर निकलेंगे प्रभु जगन्नाथ

बाहुड़ा यात्रा के साथ आस्था, मान्यता व परंपराओं का त्योहार रथ यात्रा का समापन हो गया. अब श्रीमंदिर में ही अगले एक साल पर प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा की पूजा अर्चना नीति नियम के साथ की जायेगी. एक साल बाद अगले वर्ष रथ यात्रा पर पुन भक्तों को दर्शन देने के लिये महाप्रभु श्रीमंदिर से बाहर निकलेंगे.

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