कैसे हुआ नामकरण
पत्थरों पर भीम के पैरों के निशान के कारण जगह का नाम भीमखंदा पड़ा. बोंबोगा नदी की कल-कल बहती धारा पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. बोंबोंगा नदी के बीचों बीच भगवान शिव का मंदिर है. कहा जाता है कि द्वापर युग में पांडवों ने यहां पूजा की थी. यहां पिकनिक मनाने के लिए पहुंचने वाले सैलानी यहां पहले पूजा अर्चना करते हैं, इसके पश्चात ही पिकनिक मनाते हैं.
Also Read: सब जूनियर नेशनल आर्चरी चैंपियनशिप के लिए सरायकेला में तीरंदाजी चयन शिविर का आयोजन, इन लोगों का हुआ सेलेक्शन
कई गहन रहस्यों को समेटे हुए है भीमखंदा
सरायकेला का भीमखंदा खुद में कई गहन रहस्यों को समेटे हुए हैं. यहां महाभारत काल का विस्तृत उल्लेख मिलता है. गांव के बुजुर्ग और स्थानीय लोग इस स्थान पर पांडवों के ठहरने की बात करते हैं. मान्यता है कि पांडवों ने पत्थरों के बीच चूल्हा बनाया, जिस पर द्रौपदी ने खाना पकाया था.
भीम के पांव के निशान लोगों की कौतुहल बढ़ाता है
भीमखंदा में पत्थरों के बीच बना छोटा चूल्हा, भीम के पांव के निशान और शिलालेख लोगों की कौतुहल बढ़ाता है. हालांकि, पत्थरों पर किस लिपि में लिखा गया है, कोई इसे पढ़ नहीं पाया. रख-रखाव के अभाव में पत्थरों पर लिखे शब्द धीरे-धीरे मिटते जा रहे हैं. यहां एक पेड़ है, जिसे अर्जुन वृक्ष कहा जाता है. लोगों के मुताबिक, इसमें सालों से कोई परिवर्तन नहीं हुआ. वृक्ष में एक डाली से पांच टहनियां निकली हैं, जिन्हें पांडवों का प्रतीक माना जाता है. यहां एक जामुन का वृक्ष भी है. उसे भी काफी पुराना माना जाता है. भीमखंदा में जमशेदपुर व आसपास के लोग काफी संख्या में पिकनिक मनाने के लिए पहुंचते हैं. झारखंड सरकार इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर रही है.
कैसे पहुंचे
भीमखंदा जिला मुख्यालय सरायकेला से करीब 20 किमी दूर है. सड़क मार्ग से सरायकेला या राजनगर से यहां पहुंचा जा सकता है. चाईबासा-जमशेदपुर मार्ग पर राजनगर से करीब 15 किमी की दूरी पर यह स्थित है.
Also Read: कॉफी विद SDM की चर्चा में शामिल हुए सेवानिवृत शिक्षक, अधिकारी को दिया ये सुझाव