1960 से हो रहा छऊ नृत्य का आयोजन
इस दौरान कलाकारों द्वारा धार्मिक, पौराणिक और सामाजिक तथ्यों पर आधारित छऊ नृत्य प्रस्तुत किया गया. मालूम हो कि सांडेबुरू गांव में 1960 से हर वर्ष मासांत पर्व के अवसर पर वार्षिक छऊ नृत्य का आयोजन किया जाता है. गणेश वंदना के साथ छऊ नृत्य का शुभारंभ किया गया.
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ऐताहिसक घटनाओं पर आधारित थी प्रस्तुति
वहीं, कलाकारों ने महाभारत पर आधारित द्रौपदी वस्त्र हरण नृत्य से दर्शकों को मुग्ध कर दिया. कलाकारों द्वारा शिकार पर आधारित जोरा सबर , कृष्ण लीला, भगीरथी गंगा, बेहुला – लखींद्र, द्रौपदी वस्त्र हरण, महिरावण बोध, जगधात्री पूजा, राजा हरिश्चंद्र नृत्य को जीवंत रूप दिया गया.
ग्रामीण मेले का भी आयोजन
इस मौके पर ग्रामीण मेला का भी आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी तादाद में लोग मेले का आनंद लेने पहुंचे थे. मान्यता है कि मासांत पर्व में केवल सरायकेला खरसावां ही नहीं बल्कि ओडिशा के लोगों में भी खासा उत्साह देखने को मिलता है. सभी इसे बड़े धूमधाम से मानते हुए अपनी परंपरा व संस्कृति को जीवंत करते हैं. इस दिन हर एक घरों में पकवान बनाए जाते हैं. सभी वर्ग के लोग मासांत पर्व को बड़ी ही धूमधाम के साथ संपन्न करते हैं.
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ये रहे मौजूद
इस दौरान मौके पर आयोजन समिति के सदस्य दिनेश कुमार महतो, डॉ जगदीश प्रसाद महतो, डॉ सदानंद महतो, रंजन महतो, अशोक महतो, दीपक महतो, गदाधर महतो, सुबोध महतो, विश्वजीत महतो, प्रदीप महतो, अनंत महतो, गोमाचरण महतो, पूर्णचंद्र महतो आदि गणमान्य सदस्य उपस्थित रहे.
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