Shravani Mela: झारखंड के इस प्राचीन शिवालय में राजा विक्रमादित्य करते थे भोलेनाथ की आराधना

Shravani Mela: झारखंड के सरायकेला-खरसावां में टापू पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर भोलेनाथ की आराधना का केंद्र है. चारों ओर से चांडिल डैम के पानी से घिरे इस मंदिर में श्रावण मास में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. श्रद्धालु नाव पर सवार होकर बाबा का जलाभिषेक करने मंदिर पहुंचते हैं.

By Rupali Das | July 19, 2025 9:29 AM
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Shravani Mela | चांडिल, शचींद्र कुमार दाश / हिमांशु गोप: झारखंड के कण-कण में शिव का वास है. यहां हर जगह भगवान शिव से जुड़े पावन स्थल मौजूद हैं. इन्हीं में से एक है, सरायकेला-खरसावां जिले में स्थित प्राचीन शिव मंदिर. बता दें कि सरायकेला-खरसवां जिला का चांडिल अनुमंडल क्षेत्र ऐतिहासिक धरोहरों से समृद्ध रहा है. यहां चांडिल डैम के निर्माण के बाद कई प्राचीन स्थल और ऐतिहासिक धरोहरें जलभंडारण क्षेत्र में समा गयीं.

धरोहरों का नहीं हुआ संरक्षण

दुर्भाग्यवश, न तो सरकार और न ही पुरातात्विक विभाग द्वारा इन धरोहरों को संरक्षित किया जा सका. इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण धार्मिक धरोहर है, कुकड़ू प्रखंड के कुमारी गांव का प्राचीन शिव मंदिर. यह गांव अब पूर्णतः जलमग्न हो चुका है. लेकिन मंदिर आज भी चांडिल डैम के बीचोबीच एक पहाड़ीनुमा टापू पर स्थित है, जो चारों ओर से पानी से घिरा है. इस मंदिर की चांडिल डैम से दूरी लगभग 7–8 किमी (नाव द्वारा), ईचागढ़ (पातकुम, मैसाढ़ा) से 3-4 किमी, कुकड़ू (ओड़या) से 1-2 किमी और नीमडीह (लावा) से 8-10 किमी है.

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जल के बीच आस्था की लौ

चांडिल डैम के पानी से घिरे इस टापू पर स्थित शिव मंदिर में आज भी श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है. श्रद्धालु नाव या मोटर बोट के माध्यम से मंदिर तक पहुंचते हैं और बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं. कहा जाता है कि डैम निर्माण के समय शिवलिंग को स्थानांतरित करने की कोशिश की गयी थी, लेकिन कोई उसे हिला नहीं सका.

सावन में उमड़ता श्रद्धालुओं का सैलाब

सावन महीने के प्रत्येक सोमवार को ईचागढ़, कुकड़ू, नीमडीह, चांडिल और सीमावर्ती पश्चिम बंगाल से हजारों श्रद्धालु शिव मंदिर पहुंचते हैं. नाव के माध्यम से वे इस पवित्र स्थल पर पूजा-अर्चना करते हैं. स्थानीय ग्रामीणों ने शिव मंदिर परिसर में एक बजरंगबली की मूर्ति भी स्थापित की है.

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इतिहास के झरोखे से

बताया जाता है कि प्राचीन काल में ईचागढ़ के राजा विक्रमादित्य यहां पूजा किया करते थे. जब भी राज्य पर संकट आता, वे विशेष पूजा का आयोजन कर संकट निवारण की प्रार्थना करते थे. आज भी इस स्थल पर अन्य मंदिरों के भग्नावशेष मौजूद हैं, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को प्रमाणित करते हैं.

पर्यटन के रूप में विकास की संभावना

मालूम हो कि कुमारी शिव मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है. बल्कि यह पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यंत संभावनाशील स्थान है. अगर सरकार और पर्यटन विभाग इस क्षेत्र को विकसित करें, तो यह न केवल क्षेत्रीय पहचान को मजबूत करेगा. बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार और सरकार के लिए राजस्व का स्रोत भी बन सकता है. इससे लोगों को आर्थिक सहयोग मिलेगा.

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