सरायकेला-खरसावां जिला में अत्यधिक दोहन, कम वर्षा और जल संरक्षण की कमी के कारण भू-गर्भीय जलस्तर लगातार गिर रहा है. खासकर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में हैंडपंप, कुएं और ट्यूबवेल सूखने लगते हैं, जिससे पीने और सिंचाई के पानी की भारी कमी हो जाती है. जल की बर्बादी को रोककर और जलसंरक्षण तकनीकों को अपनाकर हम इस गंभीर समस्या से निपट सकते हैं. ऐसी ही पहल राजनगर के कई गांवों में की जा रही है. इसका सीधा लाभ क्षेत्र के किसानों को मिल रहा है.
जल के प्रवाह को नियंत्रित करने को खेतों में छोटे चेकडैम, कंटूर ट्रेंच, जल सोख्ता का निर्माण
किसानों को मिला दोहरा लाभ
संरक्षित जल का उपयोग किसान अब सिंचाई, पौधशाला, सब्जी उत्पादन, मल्टी-लेयर खेती व रबी सीजन की फसलों में कर पा रहे हैं. इससे खेतों की उत्पादकता बढ़ी है. किसानों की आमदनी में वृद्धि हुई है. उपजाऊ मिट्टी का संरक्षण हुआ, जिससे भूमि की उर्वरता बनी रही. संचित जल के उपयोग से खेती का रकबा और उत्पादन बढ़ गया. कई किसानों ने अब मल्टी-क्रॉपिंग सिस्टम अपनाना शुरू कर दिया है. साथ ही बचे हुए पानी का उपयोग पशुपालन, किचन गार्डन और वर्मी कंपोस्टिंग में भी किया जा रहा है.
तीन बरसाती नालों में गैबियन बना रोका गया पानी
जल संरक्षण के लिए धुरीपदा पंचायत में चल रहीं कई योजनाएं
राजनगर में नाबार्ड प्रायोजित जलछाजन योजना के तहत धुरीपदा, बारुबेड़ा, गोंडामारा, बांदु, महाराजगंज, खंडाडेरा, कोटारचारा में तालाबों का निर्माण कराया गया है. गांव की बेकार पड़ी ज़मीन में छोटे-छोटे तालाब बनाकर बारिश के पानी को संरक्षित किया जाता है. फिर गांव के लोग इसी तालाब के पानी का उपयोग घरेलू कार्यों के साथ-साथ खेती के लिए भी करते हैं. इन तालाबों के आस-पास कई प्रकार की फसलें उगाई जा रही हैं, जिससे गांव के लोगों को अतिरिक्त रोजगार भी मिल रहा है.
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