लोकसभा चुनाव 2024: सिंहभूम सीट पर जोबा माझी व गीता कोड़ा के बीच लोकतंत्र की लड़ाई, पति की राजनीतिक विरासत बचाने की चुनौती

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर झारखंड की सिंहभूम सीट पर दो महिलाओं (जोबा माझी व गीता कोड़ा) के बीच लोकतंत्र की लड़ाई है. इनके समक्ष पति की राजनीतिक विरासत बचाने की चुनौती है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 10, 2024 9:28 PM
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Lok Sabha Election 2024: चाईबासा, सुनील कुमार सिन्हा-झारखंड की सिंहभूम संसदीय सीट पर चौथे चरण में 13 मई को मतदान है. लगभग 14.32 लाख मतदाता मतदान करेंगे. यहां एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है. एनडीए से भाजपा प्रत्याशी गीता कोड़ा और इंडिया गठबंधन से झामुमो प्रत्याशी जोबा माझी में रोचक मुकाबला है. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में गीता कोड़ा कांग्रेस से प्रत्याशी थी. जोबा माझी गठबंधन धर्म निभाते हुए गीता कोड़ा के समर्थन में प्रचार की थी और वोट मांगे थे, लेकिन इस बार गीता कोड़ा और मनोहरपुर विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक रहीं जोबा माझी चुनाव मैदान में आमने-सामने है. ऐसे में चुनाव दिलचस्प होने वाला है. दोनो को ही पति से राजनीति विरासत में मिली है. इस विरासत को बनाये रखने के लिए दोनों ही प्रचंड गर्मी में भी खूब पसीना बहा रही हैं. इस सीट की खास बात यह है कि चुनाव मैदान में प्रमुख प्रत्याशी में जहां दो महिला आमने- सामने हैं, वहीं महिला मतदाताओं की संख्या भी पुरुषों से अधिक है. छह विधानसभा क्षेत्र वाले इस संसदीय सीट पर पुरुष मतदाता 7,11,336 और महिला वोटर 7,35,723 हैं. दोनों प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करने के लिए दोनों दलों के स्टार प्रचारक चुनावी जनसभा भी कर चुके हैं. गीता कोडा के लिए जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभा की है, वहीं, जोबा माझी के लिए राहुल गांधी भी चुनावी सभा कर चुके हैं.

सांसद और विधायक आमने-सामने
गीता कोड़ा वर्तमान में सिंहभूम सीट से सांसद हैं, तो जोबा माझी मनोहरपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं. वह चार बार मंत्री रही हैं. ऐसे में मुकाबला रोचक होने के आसार हैं. गीता कोडा हो जनजाति से आती हैं, जबकि जोबा माझी संताल हैं. पश्चिमी सिंहभूम में हो जनजाति की आबादी 51.52% है, जबकि 9.33% मुंडा और 6.29 % संथाल हैं. दोनों प्रत्याशी अपने-अपने कार्यकाल में क्षेत्र का विकास करने का दावा कर रही हैं. इस बार के चुनाव में विकास, सिंचाई, बेरोजगारी, बंद खदान और पलायन मुद्दा है.

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छह विधानसभा सीटों में से पांच पर झामुमो के विधायक
सिंहभूम सीट झामुमो-कांग्रेस गठबंधन के दौर में हमेशा कांग्रेस के खाते में रही है, लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में यह सीट कांग्रेस के बजाय झामुमो ने अपने खाते में रखा है. इसके पीछे दो कारण प्रमुख हैं. पहला यह कि 2019 में विजयी कांग्रेस प्रत्याशी ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया. हालांकि झामुमो काफी पहले से ही कांग्रेस के बजाय अपना प्रत्याशी देना चाह रही थी. वहीं, दूसरा यह कि लोकसभा की छह विधानसभा सीटों में से पांच पर झामुमो के विधायक हैं.

कांग्रेस का रहा है वर्चस्व
वर्ष 1957 से 1971 तक लगातार चार लोकसभा चुनाव में झारखंड पार्टी के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है. जबकि सबसे अधिक सात बार कांग्रेस ने इस सीट से परचम लहराया है. वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने यहां से वर्ष 1996, 1999 और 2014 में विजय हासिल की है. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा एकमात्र ऐसे प्रत्याशी रहे हैं, जिन्होंने वर्ष 2009 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की है. 2014 में मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जयभारत समानता पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरी थी, लेकिन भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मण गिलुवा से करीब 85 हजार वोट से हार गयी थीं. 2019 में गीता कोड़ा कांग्रेस के टिकट पर फिर चुनाव में उतरीं और भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मण गिलुवा को करीब 70 हजार वोट से हराकर पिछली बार मिली पराजय का हिसाब-किताब बराबर कर लिया.

जोबा के पति देवेंद्र माझी जुझारू नेता थे
जोबा माझी के पति देवेंद्र माझी झामुमो के जुझारू नेता थे. वर्ष 1980 में चक्रधरपुर विधानसभा क्षेत्र से झामुमो-डी की ओर से जोड़ा पत्ता चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़े थे. उस समय उन्हें भी कांग्रेस का समर्थन मिला था. उन्होंने जनता पार्टी के प्रत्याशी जगन्नाथ बांकिरा को भारी मतों से हराया था. चुनाव जीतने के बाद उन्होंने 1982 में जोबा माझी से शादी की थी. उन्होंने1984 में लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन राजनीति के धुरंधर बागुन सुंबरूई से हार गये थे. इसके बाद 1985 में चक्रधरपुर विधानसभा क्षेत्र को छोड़कर मनोहरपुर विधानसभा की ओर रूख कर लिया और 1985 में मनोहरपुर विधानसभा सीट से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी रत्नाकर नायक को हरा कर मनोहरपुर से एक बार फिर विधायक बने थे.

बाबूलाल मरांडी सरकार में मंत्री रहे हैं मधु कोड़ा
गीता कोडा के पति मधु कोड़ा कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन के दौरान राज्य में वर्ष 2006 से 2008 तक मुख्यमंत्री रहे. पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा वर्ष 2000 में पहली बार भाजपा के टिकट से जगन्नाथपुर विधानसभा सीट से जीते थे. हालांकि उन्होंने सबसे पहले 1995 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन सफल नहीं हो सके थे. उन्हें झामुमो प्रत्याशी मंगल सिंह बोबोंगा ने हरा दिया था. इसके बाद 2000 में वे पुन: चुनाव लड़े, जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी सोनाराम बिरूवा ने हरा दिया. इसके बाद वे 2009 में निर्दलीय चुनाव जीते और बाबूलाल मरांडी सरकार में स्वतंत्र प्रभार मंत्री बने. 2014 में मझगांव से चुनाव लड़े और हार गये थे.

कब किसने मारी बाजी
वर्ष – सांसद – पार्टी
1957 – झारखंड पार्टी – शंभू चरण गोडसोरा
1962 – झारखंड पार्टी – हरिचरण सोय
1967 – झारखंड पार्टी – कोलाई बिरुआ
1971 – झारखंड पार्टी – मोरन सिंह पुरती
1977 – कांग्रेस – बागुन सुम्बरूई
1980 – कांग्रेस – बागुन सुम्बरूई
1984 – कांग्रेस – बागुन सुम्बरूई
1989 – कांग्रेस – बागुन सुम्बरूई
1991 – झामुमो – कृष्णा मार्डी
1996 – भाजपा – चित्रसेन सिंकु
1998 – कांग्रेस – विजय सिंह सोय
1999 – भाजपा – लक्ष्मण गिलुवा
2004 – कांग्रेस – बागुन सुम्बरूई
2009 – निर्दलीय – मधु कोड़ा
2014 – भाजपा – लक्ष्मण गिलुवा
2019 – कांग्रेस – गीता कोड़ा

क्या कहते हैं प्रत्याशी
बेरोजगारी, पलायन और बंद खदानों से हो रही समस्या मुद्दा
भाजपा प्रत्याशी गीता कोड़ा ने कहा कि सिंहभूम लोकसभा सीट पर चुनावी माहौल मेरे पक्ष में है. मतदाताओं मे भी काफी उत्साह है. हालांकि इस क्षेत्र में प्रचंड गर्मी पड़ रही है. 44 डिग्री तापमान में भी पार्टी के कार्यक्रम और जनसंपर्क अभियान के दौरान लोग घर से बाहर निकल रहे हैं और समर्थन की बात कर रहे हैं. बेरोजगारी, पलायन और बंद खदानों से हो रही समस्या के मुद्दे को लेकर चुनाव लड़ रही हूं. सिंहभूम में विकास की गति थम सी गयी है. लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है. इससे लोग पलायन करने को विवश हैं. खासकर सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासियों को रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों में पलायन करना पड़ रहा है. चुनावी माहौल पक्ष में है.

अवसरवादिता की राजनीति से जनता नाखुश
झामुमो प्रत्याशी जोबा माझी ने कहा कि सिंहभूम सीट पर भाजपा को मतदाता नकार चुकी है. भाजपा प्रत्याशी गीता कोड़ा और उनके पति मधु कोड़ा की अवसरवादिता राजनीति से जनता नाखुश है. प्रधानमंत्री मोदी जी का चाईबासा दौरा इस नाराजगी को बढ़ा कर घी में तेल डालने का काम किया है. प्रधानमंत्री न ही सरना धर्म कोड पर कुछ बोले और न ही जनजातीय बहुत क्षेत्र की दशा सुधारने पर कहा. सिंहभूम में 60 प्रतिशत आदिवासी और 10 प्रतिशत मुस्लिम व ईसाई हैं, जो प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद से भाजपा के विरुद्ध गोलबंद हो चुके हैं. मतदाता भाजपा को हराने का मन बना चुके हैं. क्योंकि कोई भारतीय संविधान के विरुद्ध नहीं हो सकता और भाजपा संविधान को बदलना चाह रही है. युवा बेरोजगार हो गये हैं, आरक्षण खत्म करने की कोशिश की जा रही है, जिसका विरोध सिंहभूम सीट पर सीधा देखने को मिल रहा है. यहां इंडिया गठबंधन 2 लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल कर रहा है.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
विकास कार्यों के साथ लोगों को देना होगा रोजगार
कोल्हान विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ मनमथ नारायण सिंह ने कहा कि इस बार सिंहभूम में लोकतंत्र की लड़ाई दो महिलाओं के बीच है. भाजपा ने गीता कोड़ा को मैदान में उतारा है, वहीं झामुमो ने जोबा माझी पर दांव लगाया है. आर्थिक रूप से पिछड़ा यह क्षेत्र देश की विकास के साथ चलने का प्रयास कर रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के आने के बाद चुनावी सरगर्मी बढ़ गयी है. जनता में भी इसका असर और उत्साह देखने को मिल रहा है. नये उद्योगपति इस क्षेत्र में व्यापार करने से कतरा रहे हैं. कृषि मॉनसून पर निर्भर है और इसमें पूंजी का निवेश न के बराबर हो रहा है. इस क्षेत्र में नीतियों और कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलने पर ही आर्थिक और सामाजिक उत्थान संभव है. क्षेत्र को प्रगति के पथ पर लाने के लिए सरकार को अपनी नीतिओं और कार्यक्रमों में समन्वय स्थापित कर विकास के साथ लोगों को रोजगार देना होगा. कीचड़ में कमल खिलेगा या तीर निशाने पर लगेगा, यह चुनाव के बाद ही निश्चित रूप से कहा जा सकता है.

राष्ट्रीय के साथ स्थानीय मुद्दे होंगे अहम
टाटा कॉलेज के राजनीतिक विज्ञान विभाग के डॉ हरीश कुमार कहते हैं कि इस बार भाजपा और झामुमो दोनों ने ही महिला उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. दोनों ही उम्मीदवार राजनीति पृष्ठभूमि वाले परिवार से हैं. भाजपा प्रत्याशी गीता कोड़ा के पति मधु कोड़ा जगन्नाथपुर के विधायक, सिंहभूम के सांसद और झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं. वहीं, झामुमो प्रत्याशी जोबा माझी के पति दिवंगत देवेंद्र माझी मनोहरपुर के विधायक रहे हैं. गीता कोड़ा जगन्नाथपुर की विधायक रही हैं और सिंहभूम की सांसद हैं. वहीं, जोबा माझी भी अलग राज्य गठन के समय से ही ( 2005 को छोड़कर) लगातार विधायक और राज्य सरकार में मंत्री रही हैं. दोनों ही प्रत्याशियों के पास राजनीति का अनुभव है, लेकिन सवाल जनता के मन में यह है कि किसके अनुभव का लाभ क्षेत्र की जनता को कितना मिला है. जनता इस बात की पड़ताल जरूर करेगी कि किस प्रत्याशी को क्षेत्र के विकास का कितना अवसर मिला और किसने कितना विकास किया. खासकर जगन्नाथपुर-मझगांव और मनोहरपुर-चक्रधरपुर विधानसभाओं की जनता मतदान करने के पूर्व निश्चित रूप से इस बात पर विचार करेगी. 2024 के इस चुनाव में राष्ट्रीय राजनीति के मुद्दे, दस सालों के मोदी सरकार के विकास कार्यों, प्रधानमंत्री पद पर मोदी का नेतृत्व , इंडी गठबंधन के पास प्रधानमंत्री पद की अनिश्चितता और झारखंड में लगातार भ्रष्टाचार के मामलों के उजागर होने जैसे मुद्दे भी प्रत्याशियों के भविष्य तय करेंगे. इन मुद्दों के अलावा कुछ क्षेत्रीय एवं स्थानीय मुद्दे भी प्रभावी होंगे, जिसमें हो जनजाति बहुल इस सीट पर झामुमो की ओर से संताल जनजाति की महिला को उम्मीदवार बनाया जाना प्रमुख है. ऐसी परिस्थिति में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि प्रत्याशियों की जीत-हार का सारा दारोमदार गैर-जनजाति और युवा मतदाताओं पर होगा.

क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार
गांव से शहर में अलग माहौल
वरिष्ठ पत्रकार गौरीशंकर झा ने कहा कि क्षेत्र में बेरोजगारी, कुपोषण, पलायन बड़ा मुद्दा है, बंद खदानों के चलते पलायन बढ़ा है. शहरी मतदाताओं में नरेंद्र मोदी, राम मंदिर और देश की सुरक्षा के लिए किये जा रहे काम को लेकर भाजपा के पक्ष में माहौल है, जबकि ग्रामीण मतदाताओं में जल, जंगल जमीन के मुद्दे को लेकर झामुमो के पक्ष में माहौल है.

बेरोजगारी और पलायन बड़ा मुद्दा
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप बनर्जी ने कहा कि सिंहभूम सीट चुनावी रंग में रंग गयी है. न केवल प्रत्याशियों में बल्कि मतदाताओं में भी चुनाव का बेहतर महौल बना हुआ है. लोग प्रत्याशियों को सुनने को घर से बाहर निकल रहे हैं. यहां बेरोजगारी और पलायन बड़ा मुद्दा बना हुआ है.

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