Rourkela News: राउरकेला आपूर्ति विभाग में करीब 10 वर्षों से 28 हजार फर्जी लाभुकों के नाम पर 58 करोड़ से अधिक की पीडीएस सामग्री की लूट होने का खुलासा ई-केवाइसी प्रक्रिया शुरू होने के बाद हुआ है. लेकिन फर्जी कार्ड के माध्यम से करोड़ों रुपयों का यह चावल/गेहूं किसने खाकर हजम किया है अथवा इसे बेचकर अपनी तिजोरी भरी है, इसकी उपयुक्त जांच किये जाने की मांग की जा रही है.
वर्षों से चल रहे भ्रष्टाचार और अनियमितताएं हो रहीं उजागर
जानकारी के अनुसार, राउरकेला आपूर्ति विभाग में वर्षों से चल रहे भ्रष्टाचार और अनियमितताएं उजागर हो रही हैं. इसके मुताबिक, कई लोग जो परिवार के सदस्य नहीं हैं, उनके नाम भी राशन कार्ड की सूची में हैं. गैर-लाभार्थियों को लाभार्थी परिवार के सदस्य के रूप में दिखाया गया है. कार्ड पर प्रदर्शित सरनेम मैच नहीं हो रहा है. जिससे गैर लाभार्थियों के नाम से लिया जानेवाला राशन कौन खा रहा है, इसे लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं.
2014-15 में शुरू हुई थी योजना, अयोग्य लाभार्थियों पर नहीं हुई कार्रवाई
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना वित्तीय वर्ष 2014-15 से शुरू की गयी थी. राज्य खाद्य सुरक्षा संरक्षण अधिनियम के अनुसार लाभार्थियों को राशन कार्ड मिला. राशन कार्ड उपलब्ध होने के कुछ महीनों बाद ऐसी शिकायतें आयीं कि कई अयोग्य लोगों को राशन कार्ड उपलब्ध करा दिये गये. फिर घर-घर जाकर सर्वे किया गया. जिसके बाद जो लोग राशन कार्ड के लिए पात्र नहीं थे, उनका कार्ड रद्द कर दिया गया, जबकि अन्य को अपने राशन कार्ड सरेंडर करने का आदेश दिया गया. यहां तक आदेश था कि जिन अयोग्य कर्मियों ने राशन लिया है, उनसे जुर्माना वसूला जायेगा. नतीजा यह हुआ कि कई अयोग्य लाभुकों ने अपना कार्ड सरेंडर करने के लिए आपूर्ति विभाग कार्यालय के सामने लंबी कतार लगायी. लेकिन बाद में सरकार ने इस आदेश में ढील दे दी. कार्ड जमा नहीं करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी. कुछ दिनों के बाद लाभार्थियों की संख्या फिर से बढ़ गयी.
अब तक 28,000 लाभार्थियों ने नहीं की है ई-केवाइसी
अगस्त, 2024 में, राज्य सरकार ने निर्देश दिया कि प्रत्येक लाभार्थी को ई-केवाइसी करानी होगी. सरकार ने इस प्रक्रिया को 31 मार्च तक जारी रखने का समय दिया है. हालांकि अब तक राउरकेला आपूर्ति विभाग के अंतर्गत 147 सरकारी खुदरा बिक्री केंद्रों में लगभग 28,000 लाभार्थियों ने ई-केवाइसी नहीं की है. निरीक्षण के क्रम में भी यह पता चला है कि मकान मुखिया का सरनेम (पदवी) एक ही होता है, जबकि सदस्यों का सरनेम अलग-अलग होता है. इस पर गौर किया जाये तो 28 हजार लोगों के नाम पर हर महीने 5 किलो चावल या गेहूं का उठाव किया गया. यानी हर महीने 140 क्विंटल चावल या गेहूं उठाया जाता रहा है. अगर चावल की औसत कीमत 35 रुपये प्रति किलो है (जिसे सरकार मुफ्त बांट रही है), तो अदृश्य लाभार्थियों के नाम पर एक साल में करीब 5 करोड़ 88 लाख और 10 साल में करीब 58 करोड़ 80 लाख रुपये की उगाही की गयी है. 2014-15 से इस अदृश्य लाभुक के नाम पर सामान की सप्लाई हो रही है. इसे लेकर अपर आपूर्ति पदाधिकारी संजय साहू ने बताया कि विजिलेंस जांच शुरू कर दी गयी है. विभागीय जांच की प्रक्रिया भी जारी है. इसमें शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी.
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