Rourkela News: वर्ष 2024 में आम चुनाव के दौरान राउरकेला महानगर निगम (आरएमसी) का चुनाव कराना एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा था. बीजद सरकार को आड़े हाथों लेते हुए भाजपा ने इसे प्रमुख मुद्दा बनाया था. यह भी दावा किया था कि राज्य में भाजपा की सरकार बनती है, तो तत्काल आरएमसी के चुनाव कराये जायेंगे, ताकि लोगों को उनका स्थानीय जनप्रतिनिधि मिले. लेकिन जून, 2025 में भाजपा को सत्ता संभाले एक साल हो गये, पर अब तक आरएमसी के चुनाव को लेकर कोई कवायद नजर नहीं आ रही हैं. इसे लेकर स्थानीय स्तर पर विपक्षी राजनीतिक दल भी कोई विशेष दबाव नहीं बना रहे हैं.
2013 में राउरकेला को नगर निगम बनाने की हुई थी घोषणा
वर्ष 2013 में नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली तत्कालीन बीजू जनता दल सरकार ने राउरकेला नगरपालिका को नगर निगम बनाने की घोषणा की थी. इस बीच 12 साल हो चुके हैं, लेकिन राउरकेला महानगर निगम (आरएमसी) का चुनाव नहीं होने से शहरवासी अपना जनप्रतिनिधि पाने से वंचित हैं. साथ ही शहर के विकास की रफ्तार भी धीमी पड़ी है. महानगर निगम की मान्यता मिलने के बाद राउरकेला राज्य की दूसरी स्मार्ट सिटी घोषित की गयी. जिससे इसका महत्व बढ़ गया था. यदि जमीनी स्तर पर निर्वाचित प्रतिनिधित्व की मौजूदगी होती, तो प्रशासनिक और प्रतिनिधि स्तर पर लगने वाला समय महानगर के विकास को गति देने में मदद कर सकता था. इतना ही नहीं, चर्चा यह भी है कि पुलिस कमिश्नरेट जैसी व्यवस्था इसलिए लागू नहीं की जा सकी, क्योंकि महानगरीय चुनाव में निर्वाचित प्रतिनिधियों की व्यवस्था नहीं हो सकी है.
2024 के आम चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने बनाया था मुद्दा, जीतने के बाद भूले
राउरकेला महानगर निगम का चुनाव कराने की मांग पर तब के प्रमुख विपक्ष दल भाजपा समेत कांग्रेस ने लगातार आंदोलन किया था. अब राज्य में सत्ता परिवर्तन हो चुका है. भाजपा ने अब राज्य की सत्ता संभाल ली है. इतना ही नहीं, पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राउरकेला महानगर चुनाव को मुख्य राजनीतिक मुद्दा बनाया था. जिससे अब राउरकेला महानगर निगम का चुनाव कराने काे लेकर भाजपा की डबल इंजन सरकार क्या पहल करती है, इस पर सभी की नजरें हैं.
छह पंचायतों को मिलाकर आरएमसी बनाने की हुई थी घोषणा
नवंबर, 2013 में राज्य के शहरी विकास विभाग की ओर से प्रकाशित अधिसूचना में राउरकेला नगर पालिका को महानगर निगम घोषित किया गया था. इसमें राउरकेला नगरपालिका के वार्डों समेत छह पंचायतों को शामिल किये जाने की जानकारी दी गयी थी. लेकिन सुंदरगढ़ एक आदिवासी बहुल जिला और आरक्षित क्षेत्र होने के कारण संविधान की पांचवीं अनुसूची में आता है. इसलिए पंचायतों ने इसका विरोध किया. जिस कारण 14 नवंबर, 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक 6 में से 4 पंचायतें महानगर निगम से अलग कर दी गयीं और सिर्फ झारतरंग और निगड़ा पंचायत ही इसमें रखी गयीं. पांचवीं अनुसूची का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए उक्त दोनों पंचायतों ने ओडिशा हाइकोर्ट में मामला दायर किया था. मामले की सुनवाई के बाद हाइकोर्ट ने 27 मार्च, 2015 को राउरकेला महानगर निगम के चुनाव को निलंबित करने का आदेश जारी किया था. अंतरिम स्थगन जारी हुए नौ साल बीत चुके हैं. राज्य में एक के बाद एक नगरपालिका चुनाव हो रहे हैं, लेकिन इस अवधि में राउरकेला महानगर निगम शहरवासियों को निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं मिल पाया है.
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