Rourkela News: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी) राउरकेला के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है कि मंगल ग्रह का वातावरण वहां तेजी से घूमते डस्ट डेविल्स, शक्तिशाली धूल के तूफान और पानी -बर्फ से निर्मित बादल से किस तरह प्रभावित हो सकता है. यह अध्ययन यूएइ विश्वविद्यालय और चीन के सनयात सेन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के साथ मिल कर किया गया है. रिसर्च टीम ने भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) सहित कई अन्य मंगल मिशनों से एकत्र 20 से अधिक वर्षों के डेटा का अध्ययन किया है कि कैसे धूल और पानी-बर्फ आपसी प्रतिक्रिया से इस ग्रह की जलवायु और तापमान को प्रभावित करते हैं. इन प्रक्रियाओं को समझने से मंगल ग्रह के लिए खोजी मिशनों की तैयारी करने में मदद मिलेगी.
मंगल ग्रह के रोबोटिक और मानव मिशन की बन सकेगी बेहतर योजना
वहां मौसम की प्रक्रिया जान लेने से कई लाभ मिलेंगे, जैसे- अंतरिक्ष यान की सुरक्षा, भावी अंतरिक्ष यात्रियों की सहायता और इस बारे में बेहतर समझ कि क्या मंगल ग्रह पर कभी जीवन था. इस शोध के निष्कर्ष शोधपत्र के रूप में प्रतिष्ठित पत्रिका ‘न्यू एस्ट्रोनॉमी रिव्यूज (इम्पैक्ट फैक्टर 26.8) में प्रकाशित किये गये हैं. यह शोधपत्र पृथ्वी और वायुमंडलीय विज्ञान विभाग के प्रोफेसर जगबंधु पंडा और एनआइटी राउरकेला में उनके शोध छात्र अनिर्वान मंडल ने मिल कर लिखा है. इसमें यूएइ विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र के डॉ विजय कुमार गुहा और डॉ क्लॉस गेबर्ड्ट और चीन के सनयात सेन विश्वविद्यालय में वायुमंडलीय विज्ञान स्कूल के डॉ झाओपेंग वू (वर्तमान में चीन विज्ञान अकादमी के भूविज्ञान और भूभौतिकी संस्थान में कार्यरत) का सहयोग रहा है.
लाल ग्रह के रूप में जाना जाता है मंगल ग्रह
मंगल लाल ग्रह के रूप में जाना जाता है. यहां सौर मंडल में मौसम की कुछ सबसे चकित करने वाली घटनाएं होती हैं. स्थानीय और क्षेत्रीय तूफानों से उड़ कर धूल दूर तक जा सकती है और इससे हवा का पैटर्न बिगड़ सकता है. इसके चलते तापमान में बदलाव होता है और कुछ मामलों में मंगल ग्रह के वातावरण में आकस्मिक परिवर्तन भी हो सकता है.
शोधकर्ताओं ने मंगल ग्रह पर मौसम के तीन प्रमुख तत्वों पर ध्यान केंद्रित किया
1. डस्ट डेविल्स . ये हवा के छोटे-छोटे घूमते हुए कॉलम हैं जो गर्मियों में आमतौर पर दिखते हैं और उत्तरी गोलार्द्ध में अधिक बार उत्पन्न होते हैं. हालांकि ये बड़े तूफानों से छोटे होते हैं, लेकिन इनकी धूल वातावरण में बनी रहती है और इससे सतह की बनावट बदल सकती है.
3. पानी-बर्फ के बादल. ये पानी के बर्फ कणों से बने पतले, लच्छेदार बादल होते हैं. ये बादल कुछ खास मौसमों में मुख्य रूप से भूमध्य रेखा के पास, ओलंपस मॉन्स जैसे ऊंचे ज्वालामुखियों पर और ध्रुवों के आसपास दिखाई देते हैं. ये पानी-बर्फ के बादल दो तरह के होते हैं जो अलग-अलग मौसम में बनते हैं. अपहेलियन क्लाउड बेल्ट गर्मियों में बनते हैं, जब मंगल सूर्य से सबसे दूर होता है और पोलर हुड क्लाउड सर्दियों में बनते हैं. इनका बनना बर्फ पर मौसम के बदलाव और वातावरण में धूल की मात्रा पर निर्भर करता है.
मंगल ग्रह के भावी मौसम का बेहतर पूर्वानुमान मिल सकता है : प्रो. जगबंधु
प्रो जगबंधु पंडा ने बताया कि मंगल के मौसम की आधुनिक भविष्यवाणी करना सिर्फ एक वैज्ञानिक शोध नहीं है. इससे लाल ग्रह के भावी मिशनों की सफलता और वहां अतीत और भविष्य में जीवन की जानकारी की बुनियादी समझ सुनिश्चित होगी. अच्छा होगा कि मंगल के लिए इसरो के अधिक मिशन हों और वह इस तरह के शोध के लिए विश्वविद्यालय व्यवस्था में अधिक निवेश करे. इससे विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अधिक विकास होगा. शोधकर्ताओं ने इसके लिए 20 से अधिक वर्षों के इमेजिंग डेटा से पता लगाया है कि कैसे मंगल पर बदलते मौसम के कारण धूल और बादल बनते और चलते हैं. इस निष्कर्ष से मंगल की जलवायु के बारे में मनुष्य के ज्ञान और समझ की नयी परिभाषा विकसित हो रही है और इसका लाभ लेकर मंगल ग्रह के भावी मौसम का बेहतर पूर्वानुमान मिल सकता है. लाल ग्रह के लिए मिशनों की संख्या बढ़़ रही है. इसलिए वहां के वातावरण में होते निरंतर बदलावों की महत्वपूर्ण जानकारियां चाहिए, जो इस तरह के दीर्घकालिक अध्ययन से मिलती हैं.
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