PRAYAGRAJ NEWS: नई दिल्ली सर्वोच्च न्यायालय ने शुआट्स (सम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज) के पूर्व निदेशक प्रशासन विनोद बी लाल के खिलाफ प्रयागराज के नैनी थाने में दर्ज गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज मुकदमे को रद्द कर दिया है. यह फैसला न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने सुनाया.
याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं की जोरदार दलीलें
विनोद बी लाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे और कुमार विक्रांत घोष ने न्यायालय के समक्ष तर्क रखा कि याची पर दर्ज एफआईआर में न तो बल प्रयोग, न हिंसा और न ही किसी जबरदस्ती या धमकी का कोई स्पष्ट आरोप है. उन्होंने कहा कि अभियुक्त पर किसी भी विशेष प्रत्यक्ष आपराधिक कृत्य का उल्लेख नहीं है, जिससे गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई का आधार बनता हो.
एफआईआर में नहीं दिखा हिंसा या धमकी का कोई आधार
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि एफआईआर में दर्ज आरोप किसी भी प्रकार से संज्ञेय अपराध की श्रेणी में नहीं आते हैं. यदि आरोप केवल गैर-संज्ञेय अपराधों तक सीमित हैं, तो ऐसे मामलों में गैंगस्टर एक्ट के प्रावधानों को लागू करना तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता. कोर्ट ने माना कि आरोपी के खिलाफ कार्रवाई का कोई ठोस आधार नहीं है.
हरियाणा राज्य बनाम भजनलाल केस को आधार बनाकर फैसला
खंडपीठ ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों का हवाला दिया, विशेष रूप से हरियाणा राज्य बनाम भजनलाल मामले में निर्धारित मानकों को आधार बनाते हुए कहा कि एफआईआर और आरोपपत्र दोनों में कोई नया तथ्य नहीं है, जो याची के खिलाफ गंभीर अपराध साबित करता हो. केवल कुछ दस्तावेजों और प्रपत्रों का अस्पष्ट संदर्भ दिया गया है.
गैंगस्टर रूल्स 2021 के उल्लंघन का मामला
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में गैंगस्टर रूल्स 2021 की धारा 16 और 17 के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है. न तो उचित प्रक्रिया अपनाई गई, न ही याची के खिलाफ कोई ऐसा प्रमाण प्रस्तुत किया गया जिससे यह साबित हो कि उन्होंने किसी संगठित आपराधिक गतिविधि में भाग लिया हो.
न्यायालय का निष्कर्ष
न्यायालय ने कहा कि कानून का उद्देश्य केवल नाम के आधार पर किसी को गैंगस्टर घोषित करना नहीं है, बल्कि ठोस और प्रत्यक्ष साक्ष्य की आवश्यकता होती है. याची के खिलाफ दर्ज एफआईआर में न तो कोई स्पष्ट आरोप है, न ही किसी प्रकार की हिंसा या धमकी का संकेत. ऐसे में इस प्रकार की एफआईआर को जारी रखना न्याय के साथ अन्याय होगा.
सर्वोच्च न्यायालय ने एफआईआर रद्द करते हुए साफ किया कि इस मामले में गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज मुकदमा कानून के दायरे से बाहर है और याची को अनावश्यक रूप से अभियोजन की प्रक्रिया में घसीटा गया था.
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