वैज्ञानिकों के अनुसार, अभी तक विश्व में 1.7 मिलियन जीवों की प्रजातियां हैं. ये पृथ्वी पर संतुलित जैव विविधता का निर्माण करती हैं. पर्यावरण संतुलन में जैव विविधता का काफी योगदान है. विश्व में स्थित जैव विविधता के 36 मुख्य हॉटस्पॉट में से एक भारत का हिमालयी क्षेत्र भी है. यहां विभिन्न प्रकार की दुर्लभ वनस्पति पायी जाती हैं. बढ़ते प्रदूषण के कारण इन प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है.
एक अध्ययन के अनुसार, डेढ़ सौ से अधिक प्रजातियों पर खतरा मंडरा रहा है. विदेशी पादपों से भी इन पर खतरा बढ़ गया है. पार्थेनियम (गाजर घास) विश्व के सात सर्वाधिक हानिकारक पौधों में शुमार है. आजकल यह घास विश्व में तेजी से फैल रही है. इसके अलावा तेजी से फैल रही जनसंख्या का भी असर पड़ा है.
जैव प्रौद्योगिक परिषद के वैज्ञानिक डॉ मणिचंद्र मोहन शर्मा ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2024 तक भारत की जनसंख्या 144 करोड़ तक पहुंच जायेगी और 2027 तक यह जनसंख्या चीन से 25 प्रतिशत अधिक हो जायेगी. बढ़ती जनसंख्या और प्रदूषण से पर्यावरण को दिन प्रतिदिन खतरा बढ़ता जा रहा है. पर्यावरण असंतुलन के लिए ग्रीन हाउस गैस और जलवायु परिवर्तन का भी 45 प्रतिशत योगदान है.
इतना ही नहीं जंगलों में लगनेवाली आग भी जैव विविधताओं के लिए खतरा बनती जा रही है. कई देशों के जंगलों में भीषण आग लग चुकी है. इससे कई प्रजातियां अन्य देश या प्रदेश में पहुंच कर अपना अस्तित्व बढ़ा लेती हैं और वहां की स्थानीय प्रजातियों को पनपने नहीं देती. इससे धीरे-धीरे देशी प्रजातियां खत्म हो जाती हैं.