शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में कट्टरपंथी ताकतों को खुलकर संरक्षण दिया जा रहा है. यूनुस सरकार ने जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों पर लगे प्रतिबंध हटा लिए हैं, जो हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले और भारत विरोधी गतिविधियों के लिए बदनाम रहा है. यही नहीं, इस संगठन की छात्र शाखा इस्लामी छात्र शिबिर को भी राजनीतिक समर्थन मिल रहा है. यह चिंता का विषय है कि ऐसे उग्रवादी संगठनों को अब मुख्यधारा की राजनीति में लाने की कोशिशें हो रही हैं.
स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब सरकार में चरमपंथी विचारधारा के लोगों को उच्च पदों पर नियुक्त किया जा रहा है. उदाहरण के तौर पर, हिज्ब उत-तहरीर के संस्थापक सदस्य नसीमुल गनी को गृह सचिव बनाया गया है. यह वही व्यक्ति है जो वैश्विक इस्लामिक खिलाफत की पैरवी करता है. इसके अलावा मोहम्मद महफूज आलम को विशेष सहायक बनाया गया है, जो एक कट्टरपंथी इस्लामी शासन की स्थापना का समर्थन करता है और अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़काऊ बयान देता रहा है.
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सरकार की ओर से चरमपंथ को बढ़ावा देने का एक और गंभीर उदाहरण आतंकियों की रिहाई है. अल-कायदा से जुड़े संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के सरगना जशीमुद्दीन रहमानी को पिछले वर्ष जेल से रिहा कर दिया गया, जबकि वह बांग्लादेशी ब्लॉगरों की हत्या में दोषी था. अमेरिका द्वारा यूनुस को ‘उदारवादी’ नेता मानना अपने आप में सवाल खड़े करता है, खासकर तब जब उनके कार्यकाल में आतंकवादियों को रिहा किया जा रहा हो.
इन सब गतिविधियों के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है. रिपोर्ट्स के अनुसार, ISI के वरिष्ठ अधिकारी असीम मलिक ने हाल ही में ढाका का दौरा किया था, हालांकि बांग्लादेश सरकार ने इससे इनकार किया. ISI पहले भी कॉक्स बाज़ार को हथियारों की तस्करी और आतंकवादी नेटवर्क के लिए उपयोग कर चुका है.
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अगर इस बढ़ते कट्टरपंथ को समय रहते नहीं रोका गया तो इसका सीधा असर भारत पर पड़ेगा. भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में पहले ही ISI और आतंकवादी संगठनों की गतिविधियां देखी जा चुकी हैं. ULFA जैसे विद्रोही संगठनों को हथियार पहुंचाने से लेकर हिज्ब उत-तहरीर और हुजी-बी जैसे समूहों द्वारा इस्लामिक राज्य की वकालत करना, ये सभी गतिविधियां भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं.
मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार जिस दिशा में देश को ले जा रही है, वह न केवल बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष छवि को धूमिल कर रही है बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में अस्थिरता को बढ़ावा दे सकती है. अगर यही स्थिति बनी रही तो वह दिन दूर नहीं जब बांग्लादेश भी आतंकवाद से ग्रस्त एक अस्थिर राष्ट्र बन जाएगा, जैसा आज पाकिस्तान बन चुका है.
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