भारत के दुश्मन को ताकत देगा ये मुस्लिम देश, बना ली है 800 KM रेंज वाली ‘तबाही मिसाइल’!

Hypersonic Missile: नई हाइपरसोनिक मिसाइल के प्रदर्शन ने क्षेत्रीय ताकत के समीकरण बदल दिए हैं. इसकी रेंज, स्पीड और सटीकता इतनी घातक है कि यह आधुनिक युद्ध की परिभाषा बदल सकती है. रक्षा तकनीक में यह एक बड़ी छलांग मानी जा रही है.

By Govind Jee | July 23, 2025 4:51 PM
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Hypersonic Missile: दुनिया की बड़ी सैन्य शक्तियां जब हाइपरसोनिक मिसाइलों की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ रही हैं, उसी कड़ी में अब तुर्की ने भी बड़ी छलांग लगाई है. 22 जुलाई 2025 को तुर्की ने अपनी पहली और अब तक की सबसे ताकतवर हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल ‘तायफून ब्लॉक-4’ को IDEF 2025 इंटरनेशनल डिफेंस फेयर में पेश किया. यह मिसाइल न सिर्फ तुर्की की सैन्य ताकत को नए आयाम देगी, बल्कि यह पूरे पश्चिम एशिया और यूरोप में शक्ति संतुलन को भी प्रभावित कर सकती है. Roketsan द्वारा निर्मित यह मिसाइल अब सीरियल प्रोडक्शन यानी बड़े पैमाने पर निर्माण की स्थिति में पहुंच चुकी है.

क्या है तायफून ब्लॉक-4 मिसाइल? (Typhoon Block 4 Hypersonic Missile in Hindi)

‘तायफून ब्लॉक-4’ तुर्की की पहली हाइपरसोनिक और सबसे लंबी रेंज वाली शॉर्ट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (SRBM) है. यह मिसाइल ध्वनि की गति से लगभग 5.5 गुना तेज (6,600 किमी/घंटा) उड़ सकती है और 800 किलोमीटर की रेंज तक दुश्मन के ठिकानों को निशाना बना सकती है. इसकी सबसे खास बात है इसकी सटीकता. यह महज 5 मीटर के दायरे में लक्ष्य को भेद सकती है.

इसका वजन 7200 किलो और लंबाई 10 मीटर है. 938 मिमी व्यास वाली इस मिसाइल में मल्टीपर्पज वॉरहेड है, जो एयर डिफेंस सिस्टम, सैन्य अड्डे, कमांड सेंटर और अन्य रणनीतिक ठिकानों को नष्ट करने में सक्षम है. यह मोबाइल लॉन्चर से दागी जा सकती है, जिससे इसकी तैनाती लचीली बनती है और इसे दुश्मन के बचाव तंत्र से बच निकलने में मदद मिलती है.

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तायफून प्रोग्राम की शुरुआत कैसे हुई?

तायफून मिसाइल की जड़ें 2000 के दशक की शुरुआत में चीन की मदद से विकसित की गई बोरा मिसाइल तक जाती हैं. अक्टूबर 2022 में ‘तायफून’ का पहला परीक्षण तुर्की के रिजे-आर्टविन एयरपोर्ट से हुआ था, जिसमें इसने 561 किलोमीटर दूर समुद्र में टारगेट को सफलतापूर्वक हिट किया था. इसके बाद मई 2023 में दूसरे परीक्षण के साथ सीरियल प्रोडक्शन की शुरुआत हुई. फरवरी 2025 में तीसरे परीक्षण में इस मिसाइल ने हाइपरसोनिक स्पीड हासिल की. अंततः 22 जुलाई 2025 को इसके ब्लॉक-4 वर्जन को IDEF फेयर में दुनिया के सामने लाया गया.

Roketsan के CEO मुरात इकिंजी के अनुसार तायफून ब्लॉक-4 तुर्की की डिफेंस इंडस्ट्री का अब तक का सबसे बड़ा मील का पत्थर है. यह दुश्मन के सबसे सुरक्षित और दूरस्थ ठिकानों को नष्ट करने में सक्षम है.

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Hypersonic Missile: IDEF 2025 में क्या-क्या दिखाया तुर्की ने?

इस्तांबुल में आयोजित IDEF 2025 डिफेंस एक्सपो में तुर्की ने ‘तायफून ब्लॉक-4’ के साथ-साथ पांच और आधुनिक रक्षा प्रणालियों को भी पेश किया. इन हथियारों में शामिल हैं:

गोकबोरा मिसाइल जो 100 नॉटिकल माइल से अधिक रेंज वाली हवा-से-हवा हमला कर सकता है. एरेन 100 किमी की रेंज वाला हाई-स्पीड ड्रोन बम (Loitering Munition), आकाता पनडुब्बी से लॉन्च की जाने वाली एंटी-शिप मिसाइल, 300 ER 500 किमी रेंज की एयर-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल, और सिमसेक-21500 किग्रा वजन तक के सैटेलाइट को 700 किमी ऊंचाई तक ले जाने में सक्षम स्पेस लॉन्च व्हीकल. 

इस फेयर में 44 देशों की 1300 रक्षा कंपनियां शामिल हुईं, जिनमें अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन, यूरोप की एयरबस और ब्रिटेन की BAE सिस्टम्स जैसी दिग्गज कंपनियां भी शामिल थीं.

तुर्की की डिफेंस इंडस्ट्री कैसे बनी आत्मनिर्भर?

तुर्की ने 1990 के दशक तक अधिकांश हथियार अमेरिका और यूरोपीय देशों से खरीदे. बाद में चीन के सहयोग से उसने 300 किमी रेंज की ‘बोरा’ मिसाइल बनाई. Roketsan की स्थापना 1988 में हुई थी, जिसने आज तुर्की को आत्मनिर्भर डिफेंस पावर में बदल दिया है. अब तुर्की अपने ड्रोन (जैसे बायकर TB2), रडार (Aselsan) और हवाई रक्षा प्रणाली (Siper) खुद बना रहा है. Roketsan, Aselsan और Baykar जैसे घरेलू रक्षा उत्पादकों के चलते तुर्की अब ‘स्टील डोम’ नाम से एक नया एयर डिफेंस नेटवर्क भी विकसित कर रहा है, जो भारत के ‘आकाश’ सिस्टम की तरह है.

क्या भारत को चिंता होनी चाहिए?

हालांकि तायफून ब्लॉक-4 भारत के लिए सीधा खतरा नहीं है, लेकिन इसके कई रणनीतिक निहितार्थ हैं जो पाकिस्तान से नजदीकी तुर्की और पाकिस्तान के बीच रक्षा सहयोग लंबे समय से रहा है. यदि तुर्की अपनी मिसाइल तकनीक पाकिस्तान को साझा करता है, तो यह भारत की सुरक्षा नीति के लिए खतरा बन सकता है.

भारत भी हाइपरसोनिक मिसाइलों (जैसे BrahMos-2, ET-LDHCM) पर काम कर रहा है. लेकिन तुर्की का यह कदम यह दिखाता है कि विकास की रफ्तार को और तेज करने की जरूरत है. तुर्की की बढ़ती ताकत से मध्य-पूर्व और यूरोप में शक्ति संतुलन प्रभावित हो सकता है, जिसका अप्रत्यक्ष असर भारत के ऊर्जा हितों पर भी पड़ सकता है.

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