India Indus Action: भारत की जल नीति से क्षेत्रीय संकट की आशंका
फवाद शेर ने अपने संबोधन में कहा कि भारत सिंधु जल संधि के प्रावधानों को एकतरफा बदलने की कोशिश कर रहा है, जिससे पाकिस्तान को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान पहले से ही जल संकट से जूझ रहा है और भारत की सख्त नीति, इस संकट को और बढ़ा सकती है. उन्होंने जल को केवल कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक अधिकार भी बताया.
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OIC और वैश्विक मंचों से समर्थन की अपील
पाकिस्तान ने यह भी दावा किया कि OIC के विदेश मंत्रियों ने भारत की जल नीति को लेकर पहले ही चिंता जताई है. फवाद शेर ने यह भी दोहराया कि पाकिस्तान अपने जल अधिकारों की रक्षा के लिए यह मुद्दा लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता रहेगा. उनका कहना था कि विश्व समुदाय को इस पर हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि दक्षिण एशिया में जल सुरक्षा बनी रह सके.
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भारत ने बढ़ाई जल परियोजनाओं की रफ्तार
भारत की ओर से फिलहाल इस आरोप पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन यह साफ है कि भारत जम्मू-कश्मीर में पनबिजली परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ा रहा है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने चार प्रमुख परियोजनाओं पाकल डुल, किरु, क्वार और रतले पर चिनाब नदी के किनारे काम तेज कर दिया है. ये परियोजनाएं 2026 से 2028 के बीच शुरू हो सकती हैं.
भारत का स्पष्ट रुख (India Indus Action)
भारत का रुख इस मामले में साफ है. वह मानता है कि पाकिस्तान जब तक सीमा पार आतंकवाद का समर्थन बंद नहीं करता, तब तक सिंधु जल से जुड़े प्रोजेक्ट्स पर काम नहीं रोका जाएगा. भारत का कहना है कि वह सिंधु जल संधि के नियमों का पालन करते हुए अपनी हिस्से की नदियों पर विकास कार्य कर रहा है.
सिंधु जल संधि
सिंधु जल संधि वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी. इसके तहत भारत को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलुज) का पानी उपयोग करने का अधिकार मिला, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चिनाब) का प्राथमिक उपयोग मिला. यह संधि अब तक सबसे स्थिर जल-संधियों में मानी जाती रही है, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें राजनीतिक तनाव बढ़ गया है.