इन दोनों भूकंपों की टाइमिंग और लोकेशन ने कई लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि कहीं ये परमाणु गतिविधियों से जुड़े हुए तो नहीं हैं. खासकर तब, जब मीडिया रिपोर्ट्स और सैटेलाइट तस्वीरों में इस्फहान, फोर्डो और नतांज़ जैसे परमाणु ठिकानों पर हमलों और क्षति के संकेत मिले हैं. इससे परमाणु विस्फोट या सैन्य गतिविधियों से भूकंप पैदा होने की अटकलों को बल मिला है.
इसे भी पढ़ें: अब सिर्फ अपने नहीं, पड़ोसियों को भी बचाएगा भारत! ईरान से चल रही निकासी तेज
हालांकि, विशेषज्ञ इन अटकलों को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे. उनका कहना है कि ईरान ‘Alpine-Himalayan Seismic Belt’ पर स्थित है, जो कि भूकंपीय रूप से दुनिया के सबसे सक्रिय क्षेत्रों में से एक है. आंकड़े बताते हैं कि यहां हर साल करीब 2,000 से अधिक भूकंप दर्ज किए जाते हैं, जिनमें से औसतन 15 से 16 भूकंप की तीव्रता 5 या उससे अधिक होती है. 2006 से 2015 के बीच ही ईरान में 96,000 से ज्यादा भूकंप रिकॉर्ड किए गए थे.
जहां तक परमाणु परीक्षण से भूकंप की बात है, अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण (USGS) और संयुक्त राष्ट्र की निगरानी संस्था CTBTO का कहना है कि भूमिगत परमाणु विस्फोट स्थानीय स्तर पर भूकंपीय गतिविधि को ट्रिगर कर सकते हैं, लेकिन ये आमतौर पर छोटे क्षेत्र में सीमित होते हैं और इनकी भूकंपीय लहरें प्राकृतिक भूकंप से अलग होती हैं. प्राकृतिक भूकंप में दोनों प्रकार की तरंगें P-वेव और S-वेव होती हैं, जबकि परमाणु विस्फोट मुख्य रूप से केवल P-वेव उत्पन्न करता है.
इसे भी पढ़ें: ईरान में कितने हैं सिख और कहां हैं उनके गुरुद्वारे? जहां पर पीएम मोदी ने किया था दर्शन
बार्कले सिस्मोलॉजी लैब और नेशनल जियोग्राफिक जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के अनुसार, भूकंपीय तरंगों के विश्लेषण से यह साफ किया जा सकता है कि झटका प्राकृतिक है या मानवजनित. CTBTO और स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा किए गए विश्लेषणों में पाया गया कि सेमनान और फोर्डो के भूकंप प्राकृतिक कारणों से ही हुए हैं. इससे पहले भारत-पाकिस्तान तनाव के समय भी इसी तरह के भूकंपों को लेकर परमाणु परीक्षण की अफवाहें फैली थीं, जिन्हें बाद में वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर नकार दिया गया था.
फिलहाल उपलब्ध वैज्ञानिक आंकड़े और विश्लेषण यह दर्शाते हैं कि इन भूकंपों का परमाणु परीक्षण या सैन्य गतिविधियों से कोई ठोस संबंध नहीं है. लेकिन ऐसे संवेदनशील इलाकों में, जहां अफवाहें जल्दी फैलती हैं, वहां पारदर्शिता, सटीक वैज्ञानिक निगरानी और सार्वजनिक जानकारी बेहद जरूरी हो जाती है.