कभी साथ बनाते थे मिसाइल, आज एक-दूजे के दुश्मन! ईरान-इजराइल में कैसे हुई लड़ाई

Israel-Iran War के बीच क्या आपको पता है कैसे कभी गहरे दोस्त रहे दोनों देश अब कट्टर दुश्मन बन गए. 1948 में इजराइल की स्थापना के बाद ईरान ने उसे व्यावहारिक समर्थन दिया था. अब ये दोनों ही देश एक-दुसरे के दुश्मन बन गए हैं.

By Ayush Raj Dwivedi | June 17, 2025 10:38 AM
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Israel-Iran War: मिडिल ईस्ट में इन दिनों इजराइल और ईरान के बीच जंग जैसी स्थिति बनी हुई है. एक तरफ ईरान लगातार तेल अवीव को निशाना बना रहा है तो दूसरी ओर इजराइल तेहरान पर पलटवार कर रहा है. लेकिन शायद कम ही लोग जानते हैं कि ये दोनों कट्टर दुश्मन कभी एक-दूसरे के सबसे बड़े रणनीतिक साझेदार हुआ करते थे. इजराइल और ईरान की दोस्ती इतनी गहरी थी कि दोनों देशों ने मिलकर मिसाइल प्रोग्राम तक चलाया था और खुफिया एजेंसियां एक-दूसरे को ट्रेनिंग देती थीं.

1948 में हुई इजराइल की स्थापना

1948 में जब इजराइल एक यहूदी राष्ट्र के तौर पर अस्तित्व में आया, तो अधिकांश अरब देशों ने इसका विरोध किया. उस समय ईरान के शाह रजा पहलवी ने पश्चिमी सोच अपनाई और इजराइल को व्यावहारिक रूप से मान्यता दे दी. हालांकि, औपचारिक मान्यता नहीं दी जा सकी क्योंकि अरब देशों से रिश्ते बिगड़ने का खतरा था. बावजूद इसके, ईरान का यह कदम इजराइल के लिए साहसिक समर्थन के रूप में देखा गया.

मजबूत होती गई साझेदारी – रक्षा और खुफिया तालमेल

1950 में दोनों देशों ने राजनयिक संबंध स्थापित किए. इसके बाद तो दोस्ती परवान चढ़ती गई. ईरान की खुफिया एजेंसी SAVAK और इजराइल की Mossad एक साथ काम करने लगे. Mossad ने SAVAK एजेंटों को ट्रेनिंग दी. इजराइल ने ईरानी सैनिकों को हथियारों के उपयोग की ट्रेनिंग दी. दोनों ने मिलकर ईरान-इराक युद्ध के दौरान कुर्दों की मदद की थी ताकि इराक को कमजोर किया जा सके.

‘Project Flower’ जब दोनों देश बना रहे थे साझा मिसाइल

1977 में ईरान और इजराइल ने मिलकर एक साझा मिसाइल प्रोग्राम शुरू किया – Project Flower।
इसका मकसद था एक परमाणु सक्षम सबमरीन-लॉन्च मिसाइल विकसित करना. यह प्रोजेक्ट अमेरिका से छिपाकर शुरू किया गया था. मिसाइल असेंबली के लिए संयंत्र भी बनाए गए थे. लेकिन 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति के बाद शाह का शासन खत्म हुआ और यह प्रोजेक्ट भी बंद कर दिया गया.

दोस्ती बनी दुश्मनी

1979 में ईरान में खुमैनी की अगुवाई में इस्लामिक क्रांति हुई और शाह की सत्ता का अंत हो गया. नई कट्टरपंथी सरकार ने इजराइल को ‘दुश्मन’ घोषित कर दिया. तेहरान स्थित इजराइली दूतावास बंद कर दिया गया. मिसाइल प्रोजेक्ट रद्द कर दिया गया. दोनों देशों के बीच वर्षों चली आ रही कूटनीतिक और सैन्य साझेदारी खत्म हो गई. अब दोनों एक-दूसरे को मिटाने की कसम खाते हुए मिडिल ईस्ट की राजनीति को हिला रहे हैं.

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