Pakistan Army Chief: रियासत-ए-मदीना क्या है? जिसका जिक्र कर रहे है पाक आर्मी चीफ

Pakistan Army Chief: पाक सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने इस्लामाबाद में रियासत-ए-मदीना की तर्ज पर पाकिस्तान को इस्लामी कल्याणकारी राष्ट्र बनाने की बात कही. आलोचकों ने इसे धार्मिक भावनाएं भुनाने और नाकाम शासन को धार्मिक आदर्शों से ढकने की कोशिश बताया है.

By Aman Kumar Pandey | April 17, 2025 1:05 PM
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Pakistan Army Chief: पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने हाल ही में इस्लामाबाद में आयोजित “ओवरसीज पाकिस्तान कन्वेंशन” के दौरान एक खास संदेश दिया. उन्होंने देश को एक इस्लामी कल्याणकारी राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की बात कही और इसके लिए रियासत-ए-मदीना को आदर्श मॉडल बताया. जनरल मुनीर का मानना है कि पाकिस्तान की नींव ही कलमा (इस्लामी आस्था) के आधार पर रखी गई थी, और इस देश को पैगंबर मोहम्मद द्वारा बनाए गए मदीना के संविधान, यानी “साहिफा मदीना”, के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए.

उन्होंने इस्लामी मूल्यों और पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं को पाकिस्तान के सामाजिक और राजनीतिक ढांचे में समाहित करने पर जोर दिया. जनरल मुनीर के मुताबिक, एक ऐसा समाज बनाना जरूरी है जो न्याय, समानता, पारदर्शिता और सामाजिक सेवा जैसे आदर्शों पर खड़ा हो – ठीक उसी तरह जैसे मदीना में इस्लाम के प्रारंभिक दिनों में स्थापित हुआ था.

गौरतलब है कि जनरल मुनीर से पहले पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान भी रियासत-ए-मदीना को नया पाकिस्तान बनाने का आधार बता चुके हैं. वर्ष 2022 में इमरान खान ने देश को उसी रास्ते पर ले जाने की बात कही थी. हालांकि आलोचकों का मानना है कि चाहे इमरान खान हों या अब जनरल मुनीर, दोनों ही इस धार्मिक अवधारणा का प्रयोग जनता की भावनाओं से खेलने के लिए कर रहे हैं. वे इसे एक आदर्श मॉडल के रूप में प्रस्तुत कर अपनी असफलताओं और कमजोर नीतियों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं. आलोचना करने वालों का कहना है कि यह धार्मिक कार्ड खेलकर लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ने और जन समर्थन हासिल करने का एक तरीका है.

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रियासत-ए-मदीना का इतिहास इस्लाम के प्रारंभिक काल से जुड़ा है. पैगंबर मोहम्मद ने 622 ईस्वी में मक्का से हिजरत कर मदीना में एक नई सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था की नींव रखी थी. इस व्यवस्था में “साहिफा मदीना” नामक एक दस्तावेज तैयार किया गया, जिसमें मदीना में रहने वाले विभिन्न धर्मों और समुदायों के अधिकार और कर्तव्यों को परिभाषित किया गया था. इसमें मुसलमानों, यहूदियों और अन्य धार्मिक समूहों को धार्मिक स्वतंत्रता दी गई थी और एक ऐसी न्याय व्यवस्था स्थापित की गई थी जो सबके लिए समान हो.

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साहिफा मदीना में न्याय, समानता, धार्मिक सहिष्णुता, और सामाजिक दायित्वों को प्राथमिकता दी गई थी. इसमें यह प्रावधान था कि गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए दान या टैक्स की व्यवस्था हो. यह उस समय के लिए एक क्रांतिकारी विचार था, जिसने एक बहुधार्मिक समाज को एकजुट रखने का प्रयास किया.

हालांकि 7वीं सदी के अरब समाज के लिए यह मॉडल उपयुक्त था, लेकिन आज के समय में कुछ विशेषज्ञ इसे व्यावहारिक नहीं मानते. आलोचकों का तर्क है कि इस मॉडल को आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में लागू करना कठिन है, क्योंकि यह धार्मिक व्याख्याओं पर आधारित है, जो लोकतांत्रिक बहस और नीति-निर्माण की प्रक्रिया में बाधा बन सकती हैं. इसके अलावा, महिला अधिकारों, अल्पसंख्यकों और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की दृष्टि से यह मॉडल कई सवाल खड़े करता है.

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इस संदर्भ में जनरल मुनीर का बयान एक बार फिर इस बहस को जन्म देता है कि क्या धार्मिक इतिहास और आदर्शों को आधुनिक राष्ट्र की राजनीति और प्रशासन का आधार बनाया जा सकता है, और यदि हां, तो किस हद तक?

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