US Secretly Deploys B52 Bomber Near India: अमेरिका ने चोरी से भारत के करीब उतारा बॉम्बर B-52 जहाज, लेकिन क्यों?

US Secretly Deploys B52 Bomber Near India: ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) विशेषज्ञ एमटी एंडरसन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक सैटेलाइट इमेज साझा की है, जिसमें स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि डिएगो गार्सिया मिलिट्री बेस पर अमेरिका ने कई उन्नत सैन्य विमानों की तैनाती कर रखी है.

By Aman Kumar Pandey | July 3, 2025 6:37 PM
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US Secretly Deploys B52 Bomber Near India: हाल ही में सामने आई सैटेलाइट इमेजरी से इस बात का खुलासा हुआ है कि अमेरिका ने हिंद महासागर के बेहद संवेदनशील और सामरिक दृष्टिकोण से अहम डिएगो गार्सिया द्वीप पर अपने सैन्य गतिविधियों को तेज कर दिया है. यह द्वीप भारत के बेहद करीब स्थित है और यहां अमेरिकी वायुसेना ने बमवर्षक विमानों से लेकर लड़ाकू जेट्स तक को तैनात किया है. अमेरिका की यह तैनाती मौजूदा वैश्विक भू-राजनीतिक हालातों को देखते हुए बेहद अहम मानी जा रही है.

सैटेलाइट इमेजरी से बड़ा खुलासा

ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) विशेषज्ञ एमटी एंडरसन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक सैटेलाइट इमेज साझा की है, जिसमें स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि डिएगो गार्सिया मिलिट्री बेस पर अमेरिका ने कई उन्नत सैन्य विमानों की तैनाती कर रखी है. इसमें चार B-52 बमवर्षक, छह F-15 फाइटर जेट्स और छह KC-135 टैंकर विमान शामिल हैं. ये तैनाती किसी सामान्य अभ्यास का हिस्सा नहीं लगती, बल्कि इसके पीछे स्पष्ट रूप से एक रणनीतिक उद्देश्य दिखाई देता है.

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क्यों खास है ये तैनाती?

B-52 बमवर्षक अमेरिका के सबसे शक्तिशाली दीर्घ दूरी तक मार करने वाले विमान माने जाते हैं, जो परमाणु और पारंपरिक दोनों तरह के हथियार ले जाने में सक्षम हैं. इन विमानों की मौजूदगी बताती है कि अमेरिका किसी संभावित बड़े सैन्य ऑपरेशन की तैयारी कर रहा है या फिर क्षेत्रीय तनाव की स्थिति में अपनी स्थिति को मजबूत बनाना चाहता है. F-15 लड़ाकू विमान हवा से हवा में लड़ाई के लिए बेहद सक्षम माने जाते हैं और हवाई वर्चस्व कायम करने की दिशा में इनका कोई सानी नहीं. वहीं, KC-135 टैंकर विमानों की तैनाती यह दर्शाती है कि अमेरिका अपने विमानों की रेंज और मिशन की अवधि बढ़ाने की पूरी तैयारी में है.

डिएगो गार्सिया कहां स्थित है?

डिएगो गार्सिया द्वीप चागोस द्वीपसमूह का हिस्सा है और भौगोलिक रूप से इसकी स्थिति इसे भारत, अफ्रीका, मिडिल-ईस्ट और एशिया के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण बनाती है. यह द्वीप भारत के दक्षिण में लगभग 1800 किलोमीटर की दूरी पर है, जबकि चीन इससे करीब 3000 मील दूर स्थित है. 1960 के दशक में ब्रिटेन ने इसे अमेरिका को पट्टे पर दिया था और 1970 के दशक में इस पर एक बड़ा मिलिट्री बेस तैयार किया गया था. इस बेस का रनवे 3600 मीटर से भी अधिक लंबा है, जो भारी बमवर्षकों और मालवाहक विमानों के संचालन के लिए उपयुक्त है. इसके अलावा, यहां एक गहरा पानी वाला बंदरगाह भी मौजूद है, जहां परमाणु पनडुब्बियों और युद्धपोतों को तैनात किया जा सकता है.

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इस बेस को अमेरिका कई बार एशिया और मिडिल-ईस्ट में गुप्त और खुले मिशनों के लिए लॉन्चिंग पैड के रूप में इस्तेमाल कर चुका है. अफगानिस्तान और इराक में हुए अभियानों के दौरान भी इसी ठिकाने से B-2 बमवर्षक विमानों को रवाना किया गया था. मौजूदा समय में ईरान और इजरायल के बीच हालिया तनाव, साथ ही ईरान की परमाणु परियोजनाओं को लेकर अमेरिका की चिंता ने इस इलाके को फिर से रणनीतिक गतिविधियों के केंद्र में ला दिया है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह नई तैनाती सीधे तौर पर ईरान को चेतावनी देने का प्रयास हो सकता है, खासकर तब जब अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु समझौते पर बातचीत ठप पड़ी है और इजरायल के साथ ईरान की तनातनी अभी भी पूरी तरह शांत नहीं हुई है.

चीन को भी दिया गया संकेत?

एक और अहम पहलू यह है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के बीच चीन को लेकर बढ़ती चिंता के बीच डिएगो गार्सिया पर सैन्य गतिविधियां बढ़ाना, चीन के लिए भी एक कड़ा संदेश है. दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक रुख और सैन्य विस्तार के चलते अमेरिका ने अपनी इंडो-पैसिफिक नीति को और आक्रामक रूप दे दिया है. डिएगो गार्सिया की भौगोलिक स्थिति अमेरिका को यह सुविधा देती है कि वह एक ही स्थान से मिडिल-ईस्ट और इंडो-पैसिफिक दोनों क्षेत्रों में जरूरत पड़ने पर सैन्य कार्रवाई या जवाबी रणनीति को अंजाम दे सके. यह “टू-फ्रंट थिएटर ऑपरेशन” की अवधारणा को मूर्त रूप देने की दिशा में एक अहम कदम के तौर पर देखा जा रहा है. डिएगो गार्सिया पर अमेरिकी सैन्य विमानों की तैनाती किसी साधारण अभ्यास का हिस्सा नहीं है. यह अमेरिका की उस रणनीतिक सोच को दर्शाता है, जिसके तहत वह एक साथ दो मोर्चों मिडिल ईस्ट और इंडो-पैसिफिक पर अपनी सैन्य मौजूदगी बनाए रखना चाहता है. भारत के इतने करीब हो रही यह गतिविधि भारत सहित पूरे क्षेत्र के लिए अहम और सतर्कता की मांग करने वाली है.

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