Which Exam More Difficult UPSC or Gongkao: “पपीता, अनानास और अमरूद भारत में किसके जरिए आए?” या “सिगरेट के बट, चश्मे के लेंस और कार के टायर, इनमें से किनमें प्लास्टिक होता है?” यही वे सवाल हैं जिनका सामना इस साल 2025 की यूपीएससी सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में लाखों युवाओं ने किया. इन सवालों में से सभी फलों को पुर्तगालियों ने भारत में लाया था और तीनों वस्तुओं में प्लास्टिक पाया जाता है.
भारत की तरह ही, चीन में भी सिविल सेवा परीक्षाओं की तरह ही परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं, लेकिन समझने वाली बात यह है कि यह परीक्षा कोई सामान्य परीक्षा नहीं है. इस पहले चरण को पास करने वाले छात्रों को 27 घंटे की कठिन परीक्षा का सामना करना पड़ता है, जिसमें 9 अलग-अलग पेपरों से प्रश्न पूछे जाते हैं, निबंध, इतिहास, भूगोल, नीति, अर्थव्यवस्था और चिंतन क्षमता. पिछले साल का ही उदाहरण लें, “भविष्य के साम्राज्य मानसिक साम्राज्य होंगे”, इस पर 1,000 शब्दों का निबंध पूछा गया था.
UPSC 2025 में कितने बैठे, कितने पास हुए?
इस साल 2025 में इस परीक्षा ने फिर एक बार देश के सबसे प्रतिस्पर्धात्मक का दर्जा कायम रखा हुआ है. कुल 9.48 लाख युवाओं ने आवेदन किया था. जिसमें करीब 10 लाख परीक्षार्थी परीक्षा में शामिल हुए. लेकिन उनमें से सिर्फ 14,161 उम्मीदवार ही प्रारंभिक परीक्षा पास कर सके, यानी लगभग 1.4%.
अब ये सभी चयनित परीक्षार्थी अगस्त 2025 से शुरू होने वाली मुख्य परीक्षा (मेन्स) की तैयारी में जुटे हैं. इसके बाद भी अंतिम चरण में इंटरव्यू होता है. इस साल 979 पदों के लिए यह चयन प्रक्रिया जारी है.
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सरकारी नौकरी की चाह क्यों इतनी गहरी?
द इकोनॉमिस्ट की एक रिपोर्ट में छपे कहते हैं कि भारत में आज भी सरकारी नौकरी सम्मान, स्थायित्व और विवाह जैसे सामाजिक मसलों में ऊंची स्थिति देती है. यही वजह है कि लाखों युवा सालों तक सिर्फ यूपीएससी की तैयारी में लगे रहते हैं, कुछ नौकरी छोड़कर, तो कुछ कोचिंग क्लासों में समय और पैसे झोंककर.
मध्यप्रदेश की शिखा सिंह ने दिल्ली आकर तैयारी शुरू की है और अब चौथी बार परीक्षा दे रही हैं. वह रोज 10 घंटे पढ़ती हैं, लेकिन फिर भी कहती हैं, “पूरा सिलेबस नहीं हो पाता.”
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Which Exam More Difficult UPSC or Gongkao: चीन से भी ज्यादा कठिन मुकाबला
नेशनल सिविल सर्विस एग्जाम (National Civil Service Exam) है, जिसे आमतौर पर “गोंगकाो” (Gongkao / 公务员考试) कहा जाता है. 2023 में चीन में 3.4 मिलियन (34 लाख) लोगों ने सिविल सेवा परीक्षा दी. वहां सिर्फ 1.5% को नौकरी मिली, जबकि भारत में यह आंकड़ा 0.2% से भी कम रहा था.
भारत और चीन दोनों में यह परीक्षा निष्पक्ष चयन का प्रतीक मानी जाती है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सिर्फ रट्टा मारने वाले उम्मीदवार चुने जाते हैं, जबकि प्रशासनिक कौशल जैसे नेतृत्व, संवाद, टीमवर्क जैसी क्षमताएं नहीं परखी जातीं.
चीन में ‘शी जिनपिंग की विचारधारा’ जैसे सवाल भी उठते रहे हैं. भारत में भी भ्रष्टाचार की घटनाएं इस व्यवस्था पर सवाल उठाती हैं. 9 जून 2024 को ओडिशा में एक युवा अधिकारी 10 लाख की रिश्वत लेते पकड़ा गया. इससे साफ तौर पर पता चलता है कि दोनों देशों की पराभव है. द इकोनॉमिस्ट के अनुसार विश्व बैंक के सरकारी प्रभावशीलता सूचकांक में भारत और चीन क्रमशः 68वें और 74वें पर्सेंटाइल पर आते हैं.
इन कमियों को देखते हुए भारत सरकार ने “लेटरल एंट्री” की योजना शुरू की है, जिसमें निजी क्षेत्र के अनुभवी विशेषज्ञों को प्रशासन में सीधे नियुक्त किया जा सकता है. चीन में भी अनुभव आधारित कॉन्ट्रैक्ट भर्ती पर काम हो रहा है. हालांकि ये प्रयोग अभी छोटे स्तर पर हैं.
क्या मेहनत का फल सबको मिलता है?
सिविल सेवा की तैयारी में कई बार सालों लग जाते हैं, लेकिन सफलता की गारंटी नहीं होती. जो सफल नहीं होते, उनके लिए यह तैयारी न तो नौकरी दिलाती है, न ही सम्मान, बल्कि आर्थिक और मानसिक दबाव जरूर बढ़ा देती है.
2023 में चीन की एक छात्रा ने नौकरी छोड़कर तैयारी शुरू की थी, लेकिन असफल होने के बाद अब अवसाद और चिंता से जूझ रही है. भारत में भी असफलता से आत्महत्या जैसे मामले सामने आते हैं. और जो विषय, जैसे फल कौन लाया, या विचारधाराओं की तारीखें, रटे जाते हैं, वे निजी क्षेत्र में कोई काम नहीं आते. यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी नुकसानदायक है, क्योंकि लाखों युवा सालों तक रोजगार से दूर रहते हैं.
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