आधा भारत नहीं जानता, ब्रह्मोस मिसाइल का इस्तेमाल क्यों नहीं करता रूस?

Why Russia Does Not Use Brahmos Missile: रूस ब्रह्मोस मिसाइल का उपयोग नहीं करता है? आइए जानते हैं.

By Aman Kumar Pandey | July 1, 2025 4:59 PM
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Why Russia Does Not Use Brahmos Missile: ब्रह्मोस मिसाइल को दुनिया की सबसे तेज और घातक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों में गिना जाता है. यह भारत और रूस के बीच हुए संयुक्त समझौते का नतीजा है, जिसे 1998 में स्थापित ब्रह्मोस एयरोस्पेस के जरिए विकसित किया गया. भारत की इस परियोजना में हिस्सेदारी 50.5% है, जबकि रूस की 49.5%. फिर भी एक सवाल अक्सर उठता है कि जब रूस ने खुद इसकी तकनीक दी, तो वो खुद ब्रह्मोस का इस्तेमाल क्यों नहीं करता?

रूस क्यों नहीं करता ब्रह्मोस का इस्तेमाल? (Brahmos Missile)

रूस ब्रह्मोस मिसाइल का उपयोग नहीं करता है क्योंकि उसके पास पहले से ही अत्याधुनिक और घातक मिसाइलों का भंडार है. रूस के पास P-800 ओनिक्स, Kh-55 और Kh-35 जैसी मिसाइलें हैं, जिन पर ब्रह्मोस की तकनीक आधारित है. P-800 ओनिक्स विशेष रूप से ब्रह्मोस का तकनीकी आधार मानी जाती है. इसके अलावा, रूस के पास ऐसी मिसाइलें भी हैं जो ब्रह्मोस से ज्यादा दूर तक मार कर सकती हैं या परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं. यही वजह है कि रूस को ब्रह्मोस की आवश्यकता नहीं महसूस होती, और वह अपनी ही प्रणाली पर भरोसा करता है.

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रूस के पास कौन-कौन सी खतरनाक मिसाइलें हैं? (Brahmos Missile)

R-36 (Satan II) एक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) है, जो परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है और हजारों किलोमीटर दूर तक लक्ष्य भेद सकती है. RS-24 यार्स (Yars) मिसाइल 11,000 किलोमीटर से अधिक की दूरी तक मार कर सकती है और इसे मोबाइल लांचर या साइलो से दागा जा सकता है. Kh-47M2 किंजल (Kinzhal) एक हाइपरसोनिक मिसाइल, जिसकी रफ्तार माक 10 से भी ज्यादा होती है. P-800 ओनिक्स मिसाइल ब्रह्मोस की तकनीकी ‘जड़’ है और रूस इसे विभिन्न नौसैनिक प्लेटफॉर्म से लॉन्च करता है.

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ब्रह्मोस बनाम रूसी मिसाइलें में क्या है तकनीकी फर्क? (Russia)

ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसकी गति लगभग 2.8 मैक (करीब 3,450 किमी/घंटा) है. यह उसे बेहद खतरनाक और ट्रैकिंग से बचने योग्य बनाती है. वहीं रूस की Kh-55 और Kh-35 जैसी मिसाइलें अधिकतर सबसोनिक हैं, यानी उनकी गति ध्वनि से कम होती है. हालांकि रेंज और पेलोड के मामले में रूस की ICBM मिसाइलें कहीं ज्यादा घातक हैं. ब्रह्मोस तकनीकी रूप से स्वतंत्र मिसाइल मानी जाती है, हालांकि इसकी नींव रूस की P-800 ओनिक्स पर आधारित है. इस परियोजना में भारत ने गाइडेंस सिस्टम, लॉन्च प्लेटफॉर्म और एवियोनिक्स में बड़ा योगदान दिया है, जबकि रूस ने इंजन और प्रोपल्शन तकनीक मुहैया कराई है.

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भारत में ब्रह्मोस का विस्तार

भारत ब्रह्मोस के उत्पादन को तेजी से बढ़ा रहा है. योजना के मुताबिक आने वाले 10 वर्षों में भारत करीब 2000 ब्रह्मोस मिसाइलें बनाएगा. ये मिसाइलें न केवल भारत की नौसेना, वायुसेना और थलसेना के लिए काम आएंगी, बल्कि उन्हें सुखोई-30MKI जैसे रूसी मूल के लड़ाकू विमानों में भी तैनात किया जाएगा. साथ ही, ब्रह्मोस का निर्यात फिलिपींस जैसे देशों को भी हो रहा है. रूस के पास पहले से ही बेहद एडवांस और विविधतापूर्ण मिसाइल सिस्टम हैं, इसलिए उसे ब्रह्मोस की आवश्यकता नहीं है. हालांकि, भारत के लिए ब्रह्मोस एक गेम-चेंजर मिसाइल है, जो उसकी रक्षा प्रणाली को सुपरसोनिक क्षमता और अत्याधुनिक तकनीक से लैस करती है. रूस ने इस तकनीक को साझा कर भारत को मजबूत बनाया, लेकिन वह खुद अपनी पारंपरिक और नई पीढ़ी की मिसाइलों पर ही निर्भर है.

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