बक्सर. एक तरफ सरकार किसानों की आय दोगुना करने के लिए विभिन्न योजनाएं चला रही है. बीज अनुदान से लेकर कृषि यंत्र तक किसानों को अनुदान दे रही है.
बिना ऑपरेटर के चलाये जा रहे नलकूप
2019 में जब पंचायती राज्य के जिम्मेदारी दिया गया तो उसी समय गाइडलाइन जारी की गयी थी कि राजकीय नलकूपों की मरम्मत, रखरखाव, संचालन, अनुश्रवण और बिजली बिल का भुगतान पटवन शुल्क से किया जाना है, जो कि उपविकास आयुक्त की अध्यक्षता में लघु सिंचाई विभाग के कार्यालय के सभागार में 20 अगस्त 2019 के बैठक में यह तय किया गया था कि 50 रुपये प्रति घंटा के दर से पटवन शुल्क लिया जायेगा और उसी राशि से नलकूप का बिजली बिल व ऑपरेटर के मानदेय का भुगतान किया जायेगा. लेकिन हकीकत तो यह कि न किसी नलकूप पर ऑपरेटर रखा गया है न ही किसी नलकूप से एक रुपये भी पटवन शुल्क वसूला गया है. सबसे गंभीर बात यह है कि चालू बताये जा रहे 161 नलकूपों में से अधिकांश बिना नियमित ऑपरेटरों के ही चलाये जा रहे हैं. किसी भी तकनीकी निगरानी और मरम्मत व्यवस्था के अभाव में ये नलकूप किसी भी दिन पूरी तरह बंद हो सकते हैंं. किसान बताते हैं कि कई जगह तो गांव के ही युवक निजी तौर पर इन्हें चला रहे हैं, जिनकाे कोई तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है.मुखिया के भरोसे मरम्मत, पर परिणाम शून्य
सरकार द्वारा फरवरी 2019 से ही पंचायत के मुखिया को नलकूपों की मरम्मत एवं देखरेख की जिम्मेदारी सौंप दी गयी थी. इसके लिए प्रत्येक पंचायत को मरम्मत कार्य के लिए फंड भी उपलब्ध कराया गया. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आज तक इन 164 नलकूपों में से एक भी नलकूप पूरी तरह चालू नहीं हो पाया है. कई स्थानों पर नलकूप के पैनल जले हुए हैं, मोटर खराब पड़ी हैं या फिर पाइपलाइन क्षतिग्रस्त हैं. बावजूद इसके, संबंधित पंचायतों द्वारा विभाग को अभी तक 145 नलकूप योजनाओं का उपयोगिता प्रमाण पत्र यूसी नहीं दिया गया है.
पटवन के अभाव में फसलें हो रहीं बर्बाद
विभागीय अधिकारी किसानों के प्रति उदासीन
राजनीतिक लाभ का साधन बनी नलकूप योजना
पंचायत स्तर पर यह योजना अब राजनीतिक लाभ का साधन बन चुकी है. मरम्मत कार्य में अपने लोगों को ठेका देना, फर्जी बिलों के जरिये सरकारी धन की निकासी और बिना उपयोगिता रिपोर्ट दिये राशि हजम कर लेना आम होता जा रहा है. कई जगह तो नलकूप के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं यानि कागज पर नलकूप दिखाये जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में वे हैं ही नहीं. 164 नलकूपों का वर्षों से बंद पड़ा रहना, बिना ऑपरेटरों के नलकूपों का संचालन, फर्जी आंकड़े, और उपयोगिता प्रमाण पत्र का अभाव ये सब मिलकर एक बहुत बड़ी प्रशासनिक विफलता की ओर इशारा करते हैं. यह न केवल राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है, बल्कि किसानों का सरकारी व्यवस्था से विश्वास भी डगमगा रहा है. जब तक इस व्यवस्था में पारदर्शिता, जवाबदेही और नियमित निगरानी नहीं जोड़ी जाती, तब तक यह योजना भी अन्य योजनाओं की तरह भ्रष्टाचार की बलि चढ़ती रहेगी.समस्या के प्रति पल्ला झाड़ रहे जिम्मेदार
लघु सिंचाई विभाग के कार्यपालक अभियंता रंजीत कुमार से इस बाबत सवाल किया गया तो वे गोलमोल जवाब देकर पल्ला झाड़ते नजर आये. लघु सिंचाई विभाग के कार्यपालक ने कहा कि नलकूप की देखरेख व ऑपरेटर रखना पंचायत के मुखिया का काम है. उन्होंने कहा कि पंचायत को दी गयी राशि के लिए लगातार उपविकास आयुक्त की अध्यक्षता में पंचायत के मुखिया और पंचायत सचिव के साथ बैठक की गयी. लेकिन अभी तक उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया गया. ऐसे में अगले किस्त की राशि देना संभव नहीं है. नलकूप योजना का जिम्मा अब पंचायती राज व्यवस्था के तहत आ गया है. हम केवल तकनीकी सहयोग दे सकते हैं, कार्यान्वयन अब पंचायत के माध्यम से होता है. यदि उपोगिता प्रमाण पत्र नहीं आता है, तो अगली किश्त नहीं दी जायेगी.
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