Buxar News: सनातन धर्म का मूल आधार है वर्णाश्रम व्यवस्था : पौराणिक जी

सर्वजन कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम के 17वें धर्मायोजन के तीसरे दिन रविवार को श्री मारकंडेय पुराण कथा श्रवण को लेकर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ गयी.

By RAVIRANJAN KUMAR SINGH | June 15, 2025 8:11 PM
feature

बक्सर .

सर्वजन कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम के 17वें धर्मायोजन के तीसरे दिन रविवार को श्री मारकंडेय पुराण कथा श्रवण को लेकर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ गई. कथा में आचार्य श्री कृष्णानंद जी पौराणिक “शास्त्री जी ” ने कहा कि सनातन धर्म का मूल आधार वर्ण एवं आश्रम है. इस व्यवस्था में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ये चार वर्ण हैं तथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ व सन्यास चार आश्रम हैं. वर्ण तथा आश्रम के सिद्धांत का उल्लेख वेद ,स्मृति, पुराण ,महाभारत तथा अन्य धर्मशास्त्रों में मिलता है. धर्म ग्रंथों में बताया गया है वर्ण का क्या काम है तथा आश्रम का क्या कर्तव्य है. कथा को विस्तार देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि सनातन धर्म में धर्म शब्द कर्म का पर्यायवाची है. धर्म को ही कर्म तथा कर्म को ही धर्म कहा जाता है. वर्ण का जो कर्म है वही उसका धर्म भी है. भगवान वेद के तत्वों को जानने वाले स्मृतियों एवं धर्म शास्त्रों तथा पुराण आदि ग्रंथों द्वारा स्पष्टता के साथ वर्णोचित तथा आश्रमोचित कर्मों का प्रतिपादन किया गया है. मारकंडेय पुराण में चारों पक्षियों द्वारा महातपस्वी जैमिनि को बताया गया कि यदि वर्णाश्रमी कर्म का अतिक्रमण करके दूसरे वर्ण के कर्मों को करने लगे तो देश भी अधार्मिक तथा विधर्मी की श्रेणी में चल जाएगा. भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से यहीं कहा था. कुरुक्षेत्र के मध्य दोनों सेना को देखकर अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहा कि माधव इस संग्राम में महाविनाश होगा. मैं इतनी अधिक हत्या नहीं करूंगा. यह महा पाप होगा. मैं भीख मांग कर जीवन निर्वाह कर लूंगा. जिससे कुल नाश के दोष से तो बच जाऊंगा. भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम क्षत्रिय हो और भिक्षा मांग कर जीवन जीना क्षत्रिय का काम नहीं है. क्योंकि वर्ण के लिए कर्म ही धर्म है. तुम्हारा जन्म क्षत्रिय वर्ण में हुआ है, अतएव तुम्हें अपने वर्ण के अनुसार कर्म का पालन करना चाहिए. तुम्हारा कर्म है धर्म-युद्ध, अन्याय एवं अनीति को कुचलकर न्याय तथा नीति की स्थापना ही क्षत्रिय का कर्तव्य है एवं तुम्हें स्वधर्म का ही अनुष्ठान करना चाहिए. श्री कृष्ण ने 700 मंत्रों वाला एक ग्रंथ का उपदेश दिया. जिसका नाम श्रीमद्भगवत गीता है. जिसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ बताया गया है. मानव के चार वर्ण हैं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र. चारों का कर्म पृथक पृथक है. तुम्हारा धर्म है धर्म युद्ध. धर्म युद्ध में वध किया जाता है और यही वध अत्याचार, कदाचार ,भ्रष्टाचार ,व्यभिचार, अनीति ,असभ्यता को कुचलकर सदाचार ,सद्भाव, सद व्यवहार, न्याय नीति तथा सभ्यता का साम्राज्य स्थापित करता है. धर्म युद्ध क्षत्रियों के लिए खुला हुआ स्वर्ग का द्वार है. जो क्षत्रिय इस धर्म युद्ध को पाप समझकर स्वयं ही द्वार पर आए हुए युद्ध रूपी धर्म का परित्याग करता है वह साक्षात नरक का भागी बनता है. मार्कंडेय पुराण ने महाभारत के इस प्रसंग में यही शिक्षा दिया है कि जिस वर्ण का जो कर्म है वही उस वर्ण का धर्म है. जो कर्म अन्य वर्णों के लिए बताया गया है उस कर्म को यदि दूसरे वर्ण के लोग करते हैं तो वह पाप कर्म के भागी बनते हैं. आज दुनिया में इस सिद्धांत का पालन नहीं होने के कारण संपूर्ण संसार अधर्म मय वातावरण में जीने लगा है. वर्णाश्रम धर्म का विचार नष्ट होने से मानव समाज दानव बन रहा है.
संबंधित खबर और खबरें

यहां बक्सर न्यूज़ (Buxar News), बक्सर हिंदी समाचार (Buxar News in Hindi),ताज़ा बक्सर समाचार (Latest Buxar Samachar),बक्सर पॉलिटिक्स न्यूज़ (Buxar Politics News),बक्सर एजुकेशन न्यूज़ (Buxar Education News),बक्सर मौसम न्यूज़ (Buxar Weather News)और बक्सर क्षेत्र की हर छोटी और बड़ी खबर पढ़े सिर्फ प्रभात खबर पर .

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version