यूपी से आकर किसान कर रहे खेती
यहां की जमीन पर उत्तर प्रदेश से आये प्रशिक्षित किसान खेती करते हैं. स्थानीय किसान भी यूपी के किसानों द्वारा की जा रही खेती के गुर सीख रहे हैं. वे भी छोटे स्तर पर इसकी खेती करने लगे हैं. यूपी के बागपत, लखीमपुर, सराहनपुर आदि जिलों से किसान तरबूज की खेती करने के लिए दिसंबर से जनवरी माह में इस क्षेत्र में आने लगते हैं. इस समय कोसी का पानी कम हो जाता है. किसानों से जमीन लीज पर लेकर जून महीने तक तरबूज उपजातेहैं. फिर कोसी के जल स्तर में वृद्धि होने लगती है, तो बाढ़ के समय अपने घर लौट जाते हैं.
चैया के नाम से बुलाते हैं स्थानीय लोग
यूपी से आकर सुपौल जिले के तटबंध के भीतर बालू भरी जमीन में तरबूज कि खेती करने वाले किसानों को स्थानीय लोग चैया के नाम से बुलाते हैं. स्थानीय लोगों द्वारा उनको एक नया नाम दे दिया गया है. वे तटबंध के भीतर खेतों में ही घर बनाकर रहते हैं. चूंकि वे हर साल इस क्षेत्र में तरबूज की खेती के लिए आने लगे हैं. इसलिए स्थानीय लोगों के साथ पूरी तरह से घुल मिल गये हैं. लगता ही नहीं है कि वे बाहर से आकर इस क्षेत्र में रह रहे हैं. बागपत निवासी मो सलीम ने कहा कि यहां के लोग काफी अच्छे हैं. हमें यहां के लोगों का पूरा सहयोग मिल रहा है. शुरू-शुरू में थोड़ी कठिनाई हुई. अब अपने ही गांव घर जैसा लग रहा है. लखीमपुर निवासी मो जुबेर ने कहा कि यहां के लोग हमें वक्त पर खाद पानी उधार देकर भी सहयोग करते हैं. किसी शुभ कार्य में भी बुलाते हैं. हमें इधर आकर खेतीबाड़ी करने में कोई परेशानी नहीं हो रही है.
मीठे तरबूजे की मंडियों में है मांग
उत्पादित तरबूज को किसानों द्वारा पश्चिम बंगाल की विभिन्न मंडियों के अलावा यूपी की विभिन्न मंडियों तक भेजा जाता है. यहां के तरबूज मीठे व स्वादिष्ट होते हैं. इसलिए मंडियों में इसकी काफी मांग होती है. स्थानीय किसान भी छोटे स्तर पर इसकी खेती को आजमाने लगे हैं. वह दिन भी दूर नहीं, जब ये भी इसकी खेती बड़े स्तर पर शुरू होगी. यहां के किसानों के लिए यह शुभ संकेत हैं.
कहते हैं अनुमंडल कृषि पदाधिकारी
वीरपुर अनुमंडल कृषि पदाधिकारी कुंदन कुमार ने बताया कि यूपी से आये लोगों से तरबूज की खेती की सीख लेनी चाहिए. स्थानीय किसानों को भी इसकी खेती के लिए प्रेरणा मिलेगी. इससे किसानों को लाभ होगा. आर्थिक उन्नति होगी.