दो दिवसीय संतमत सत्संग का हुआ समापन

गुरु से ज्ञान प्राप्त किये बिना ईश्वर की भक्ति संभव नहीं : परमानंद जी महाराज

By RAJEEV KUMAR JHA | June 8, 2025 6:57 PM
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– गुरु से ज्ञान प्राप्त किये बिना ईश्वर की भक्ति संभव नहीं : परमानंद जी महाराज छातापुर. प्रखंड के महम्मदगंज पंचायत वार्ड संख्या दो में आयोजित दो दिवसीय संतमत सत्संग का समापन शनिवार संध्या में हो गया. समापन सत्र में कुप्पाघाट भागलपुर से आये पूज्य स्वामी परमानंद जी महाराज ने अपने प्रवचन में अमृत वाणी की वर्षा की. वहीं आयोजन स्थल पर नवनिर्मित संतमत सत्संग मंदिर का उद्घाटन किया. इस दौरान अध्यात्मिक भजन, कीर्तन, स्तुति, प्रार्थना, ग्रंथपाठ व प्रवचन के बाद आरती की गई. मौके पर भारी संख्या में श्रद्धालु नर नारी शामिल थे. इस मौके पर वीआईपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह पनोरमा ग्रुप के सीएमडी संजीव मिश्रा भी पहुंचे. उन्होंने परम पूज्य महर्षि मेहीं परमहंस जी के तैलचित्र पर पुष्प अर्पित कर मंचासीन पूज्य स्वामी का नमन किया. इस मौके पर स्वामी जी ने जीवन के मूल्यों का बखान करते लोगों से गुरु कृपा का पात्र बनने का रास्ता सुझाया. कहा कि गुरु से ज्ञान प्राप्त किये बिना ईश्वर की भक्ति नहीं की जा सकती है. गुरु ही हैं जो मानव को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं. जीवन रूपी नैया को भवसागर से पार ले जाने वाले गुरु ही होते हैं. मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद श्री मिश्रा ने अपने संबोधन में सत्संग में सम्मिलित श्रद्धालुओं को प्रेरणादायी संदेश दिया. उन्होंने कहा कि महर्षि मेंही जी का जीवनकाल सत्य, अहिंसा, और आत्मिक शुद्धि की मिसाल है. उनके बताए मार्ग पर चलकर ही हम परिवार व समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं. संतमत की विचारधारा भारत की आत्मा से जुड़ी हुई है. जो प्रेम, सेवा और साधना का मार्ग दिखाती है. हमारा कर्तव्य है कि हम संतों की वचनों को श्रवण कर उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें. कहा कि सत्संग का उद्देश्य केवल आध्यात्मिक अनुष्ठान करना नहीं है, बल्कि आत्मचिंतन और आत्मविकास का अलख जगाना भी है. वर्तमान में समाज में मानसिक तनाव, आपसी कटुता और स्वार्थ की भावना बढ़ रही है. इनसे मुक्ति केवल आध्यात्मिक चेतना से ही संभव है. उन्होंने उपस्थित लोगों से अपने बच्चों में भी आध्यात्मिक संस्कार विकसित करने तथा सत्संग जैसे आयोजनों को अपने जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनाने की अपील की. कहा कि राजनीतिक जीवन में सक्रिय रहते हुए भी वे धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजनों में जरूर भाग लेते हैं, जो कि संस्कृति और समाज के प्रति जिम्मेदारी का प्रतीक है. कहा कि एक सशक्त समाज के निर्माण की नींव अध्यात्म और मानव सेवा से ही रखी जा सकती है. राजनीति केवल सत्ता का माध्यम नहीं बल्कि सेवा का मंच है. जब राजनीति में आध्यात्मिक मूल्य जुड़ते हैं तब ही वह लोक कल्याण का साधन बनते हैं. श्री मिश्रा ने संतमत सत्संग मंदिर बनाने के लिए स्थानीय आश्रम के विक्रम बाबा के प्रति आभार व्यक्त किया. दो दिवसीय आयोजन में सराहनीय योगदान देने वाले संत समाज की प्रशंसा की. मौके पर विद्यानंद साह, प्रमोद साह, सुभाष कुमार निराला, दुखन साह, सूर्यकांत जी आदि मौजूद थे.

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