त्रिवेणीगंज. महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर उन्हें नेतृत्व की भूमिका में लाने का प्रयास किया है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे उलट नजर आ रही है. हाल ही में अनुमंडल सभागार त्रिवेणीगंज में आयोजित मुखिया प्रतिनिधियों की बैठक ने इस पहल की पोल खोल दी. यह बैठक अनुमंडल पदाधिकारी अभिषेक कुमार की अध्यक्षता में हुई. जिसमें पंचायती राज पदाधिकारी मनीष कुमार भी मौजूद थे. बैठक का उद्देश्य विकास योजनाओं की समीक्षा और जनहित से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करना था, लेकिन बैठक में अधिकांश महिला मुखिया स्वयं उपस्थित नहीं थीं. उनके जगह उनके पति या पुरुष परिजन बैठक में भाग लेते देखे गए. जानकारों के अनुसार यह स्थिति गंभीर और नियमों के विरुद्ध है. पंचायती राज अधिनियम के तहत निर्वाचित प्रतिनिधि को ही निर्णय लेने और बैठकों में भाग लेने का अधिकार है. लेकिन यहां देखने को मिला कि महिला प्रतिनिधि महज नाममात्र की मुखिया बनी हुई हैं, जबकि असली निर्णय उनके पति ले रहे हैं. ये ‘पति प्रतिनिधि’ न सिर्फ बैठकों में शामिल होते हैं, बल्कि पंचायत भवन में बैठकर सरकारी कार्यों का संचालन भी करते हैं. इस स्थिति ने पंचायतों में महिला सशक्तीकरण की मंशा को ही कठघरे में ला दिया है. स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों ने इस पर चिंता जताते हुए कहा है कि यदि महिला प्रतिनिधियों को वास्तविक अधिकार और जिम्मेदारी नहीं दी गई तो आरक्षण का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा. बैठक में अधिकारी भी इस स्थिति को नजरअंदाज करते दिखाई दिए. कोई ठोस आपत्ति या कार्रवाई की बात नहीं की गई, जिससे यह साफ हो जाता है कि यह ‘प्रतिनिधि की बजाय पति’ का चलन अब एक सामान्य, लेकिन असंवैधानिक परंपरा बन चुकी है. इस संबंध में एसडीएम अभिषेक कुमार ने कहा कि मुखियाओं की सामान्य बैठक थी. आगे से इस विषयों पर ध्यान रखेंगे.
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