Jharkhand Village Story: झारखंड में यहां है पुलिसवालों का गांव, शिबू सोरेन के एक फैसले ने बदल दी थी किस्मत

Jharkhand Village Story: झारखंड के बोकारो जिले के चंदनकियारी प्रखंड में एक गांव है लंका. यह पुलिसवालों के गांव के नाम से प्रसिद्ध है. यहां 40 से अधिक युवक-युवतियां पुलिस की नौकरी में हैं. शिबू सोरेन के मुख्यमंत्रित्व काल में सिपाही की बहाली को लेकर नियमों में बदलाव किया गया. इसका लाभ उठाकर यहां के बच्चे पुलिस में भर्ती होने लगे.

By Guru Swarup Mishra | May 11, 2025 9:14 PM
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Jharkhand Village Story: कसमार (बोकारो), दीपक सवाल-झारखंड के बोकारो जिले का एक गांव पुलिसवालों के गांव के रूप में जाना जाता है. सुनकर चौंक गए न! एक छोटे से गांव में अगर 40 से अधिक लोग पुलिस की नौकरी में हों तो उसे पुलिसवालों का गांव नहीं तो और क्या कहेंगे? चंदनकियारी प्रखंड में पश्चिम बंगाल की सीमा पर एक गांव है, जिसका नाम है लंका. इसकी तीन दिशाएं दक्षिण, पश्चिम और पूरब में बंगाल सीमा है. एक समय यह गांव काफी पिछड़ा था. सिंचाई के साधन नहीं थे. खेती-किसानी से किसी तरह गांववालों का जीविकोपार्जन होता था. फिर भी कड़ी मेहनत और संघर्ष कर ग्रामीणों ने परिवारों का न केवल भरण-पोषण किया, बल्कि बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दी.

2002 की पुलिस बहाली से मिलने लगी सफलता


वर्ष 2000 में अलग राज्य बनने के बाद झारखंड के इस गांव की किस्मत बदलने लगी. यहां के लड़के-लड़कियां बड़ी संख्या में सरकारी नौकरियों में बहाल होने लगे. वर्ष 2002 में हुई पुलिस की बहाली में एक ही परिवार के तीन भाई-बहन सफल हुए तो यह गांव चर्चा में आया. स्वर्गीय मनभूल महतो के पुत्र शिवप्रसाद महतो, सुमित्रा महतो एवं सीमा महतो ने यह सफलता पायी थी. उस बहाली में गांव के दलगोविंद महतो भी बहाल हुए थे, पर बाद में उन्हें बैंक में सफलता मिली तो पुलिस की नौकरी छोड़ दी. कुछ समय बाद मनभूल महतो की एक अन्य बेटी सुषमा महतो भी पुलिस बनी यानी एक ही परिवार में तीन बहन और एक भाई पुलिस की नौकरी में हैं. इसके बाद तो जैसे सिलसिला ही चल पड़ा. राज्य में पुलिस की जितनी भी बहालियां हुईं, प्रायः सभी में इस गांव के युवक-युवतियां सफलता हासिल करते गए.

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एक ही घर में कई पुलिस वाले


लंका के 40 से अधिक पुलिसवालों में एक दारोगा (दलगोविंद महतो), तीन हवलदार समेत बाकी युवक-युवतियां सिपाही हैं. मनभूल महतो की तरह अन्य कई घरों में भी दो या तीन भाइयों अथवा भाई-बहनों ने सफलता पायी है. अशोक महतो, चिंतामणि महतो एवं दिवाकर महतो भाई-बहन हैं और तीनों पुलिस की नौकरी में हैं. नारायण महतो, विश्वजीत महतो और आंनद महतो (तीनों भाई) भी पुलिस में बहाल हैं. रावण महतो व विभीषण महतो (दोनों भाई), रघुनंदन महतो व अश्विनी महतो (दोनों भाई), गौउर महतो व निताय महतो (दोनों भाई) भी पुलिस में हैं. इसी तरह महेंद्र महतो, अंबुज महतो, रेणुका महतो, त्रिलोचन महतो, अनंथ महतो, अश्विनी महतो, परीक्षित महतो, लक्ष्मी महतो, राजू महतो, विष्णु महतो, नमिता महतो, ज्योत्सना महतो, महिन्दी गोराई, देवेंद्रनाथ महतो, विश्वनाथ महतो, मानिकचंद्र महतो, पंकज महतो, उमेश महतो, माणिक महतो, निवारण महतो समेत अन्य कई युवक-युवतियां पुलिस की नौकरी हासिल की है.. इनमें मानिकचंद्र महतो वर्त्तमान में पुलिस की नौकरी छोड़ शिक्षक की नौकरी कर रहे हैं.

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शिबू सोरेन के मुख्यमंत्रित्व काल में नियमों में बदलाव


लंका के ग्रामीणों का मानना है कि शिबू सोरेन के मुख्यमंत्रित्व काल में सिपाही की बहाली को लेकर नियमों में बदलाव किया गया. परिवर्तन युवक-युवतियों के लिए नौकरी हासिल करने में मददगार साबित हुआ. ग्रामीण बताते हैं कि गांव में शुरू से फुटबॉल खेल खूब होता आया है. एक तो लोग खेती-किसानी से जुड़े हैं, उस पर फुटबॉल खेलने के करण युवक-युवतियां हृष्टपुष्ट रहते हैं. जब शिबू सोरेन की सरकार ने दौड़ समेत अन्य प्रक्रियाओं में नियम बदला तो इस गांव के युवक-युवतियों का भाग्य खुला और पुलिस की नौकरियां हासिल करने में मदद मिली.

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