Naxal News: ओपेन जेल में रहेगी सरेंडर करने वाली नक्सली सुनीता मुर्मू, मिलेंगे कई लाभ

Naxal News: झारखंड के बोकारो में हुई एक मुठभेड़ में एक करोड़ के इनामी समेत भाकपा माओवादियों के 8 नक्सलियों की मौत के बाद इस दस्ते की सदस्य सुनीता मुर्मू ने सरेंडर कर दिया. पुलिस ने उसकी सुरक्षा के मद्देनजर ओपेन जेल में रखने का फैसला किया है. सुनीता को सरकार की सरेंडर पॉलिसी के तहत मिलने वाले सभी लाभ दिये जायेंगे. 3 लाख रुपए भी सरकार की ओर से सुनीता मुर्मू को मिलेंगे.

By Mithilesh Jha | April 29, 2025 5:30 PM
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Naxal News| बोकारो, रंजीत कुमार : बोकारो जिले के लुगु बुरू पहाड़ की तलहटी में मुठभेड़ में मारे गये एक करोड़ के इनामी नक्सली प्रयाग मांझी उर्फ विवेक के दस्ते की सक्रिय महिला नक्सली सुनीता मुर्मू (22) ने सरेंडर कर दिया है. सोमवार को एसपी मनोज स्वर्गियारी सहित अन्य पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के सामने सरेंडर करने वाली इस महिला नक्सली को ओपेन जेल में रखा जायेगा. सरेंडर करने के बाद सुनीता मुर्मू को सरेंडर पॉलिसी के तहत सरकार की ओर से सभी लाभ भी प्रदान किये जायेंगे.

सुनीता मुर्मू को 3 लाख रुपए और अन्य सुविधाएं भी मिलेंगी

एसपी स्वर्गियारी ने बताया कि सुनीता मुर्मू नक्सली गतिविधियों को छोड़कर समाज की मुख्यधारा में लौटी है. सरकार की सरेंडर पॉलिसी के तहत मिलने वाली सारी सुविधाएं उसे दी जायेगी. साथ ही साथ उसकी सुरक्षा को देखते हुए किसी ओपेन जेल में रखा जायेगा. सरेंडर नीति के तहत सुनीता मुर्मू को 3 लाख रुपए, जीविकोपार्जन के लिए जमीन, केस लड़ने के लिए सरकारी वकील, व्यवसाय करने के लिए सरकारी सहयोग के साथ बीमा सहित अन्य सुविधाओं का लाभ भी दिया जायेगा. ये सारी सुवधाएं सुनीता को समाज में रहकर नये सिरे से एक इज्जतदार शहरी की तरह जीवन की शुरुआत करने के लिए दी जायेंगी.

सुनीता मुर्मू वर्ष 2017 में बनी थी नक्सली

एसपी ने बताया कि सुनीता मुर्मू ने पुलिस को बताया है कि वह दुमका के शिकारीपाड़ा थाना क्षेत्र के अमरपानी गांव की रहने वाली है. नक्सलियों ने उसे वर्ष 2017 में झूठ बोलकर और बरगलाकर नक्सली संगठन में शामिल कराया था. कहा गया कि जंगल में कोर्ट चल रहा है. उसमें चलना है. वह उनके साथ चली गयी. इसके बाद कभी अपने घर नहीं लौट पायी. घर लौटने के उसके सारे दरवाजे बंद हो गये.

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पुलिस के डर से जंगल-जंगल भटकती थी सुनीता मुर्मू

पुलिस के डर से जंगल में दस्ते के साथ दिन-रात भटकती रहती थी. उसे कई बार लगता था कि वह गलत रास्ते पर चल रही है. वह संगठन के साथ रहकर खाना बनाने से लेकर सभी तरह के काम करती थी. उसने हथियार चलाना भी सीख लिया था. उसके खिलाफ वर्ष 2018 में पहला केस खुखरा थाने में दर्ज हुआ. आर्म्स एक्ट और नक्सली गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरिडीह जेल में 3 साल तक बंद रही. अब उसे उम्मीद है कि सरेंडर करने के बाद जीवन पटरी पर लौटेगी. वह सामान्य जीवन जी सकेगी.

नक्सली के लिए सरेंडर पॉलिसी जीवनदान से कम नहीं है. सरेंडर करने के बाद सरकार की सरेंडर पॉलिसी के तहत लाभ हासिल कर सकते हैं. जंगल में भटकते हुए जीवन गुजारने से अच्छा खुशहाल जीवन व्यतीत करने के लिए सरेंडर करें.

मनोज स्वर्गियारी, एसपी, बोकारो

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