अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले सुखेंदु शेखर मिश्रा ने कभी सरकारी सुविधा का नहीं लिया लाभ

Republic Day 2025: सुखेंदु शेखर मिश्रा झारखंड की धरती पर जन्मे ऐसे वीर सपूत थे, जिन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया. आजादी के बाद कभी सरकारी सुविधा का लाभ नहीं लिया. जानें कैसा था उनका जीवन.

By Mithilesh Jha | January 19, 2025 7:12 PM
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Republic Day 2025: भारत की आजादी की लड़ाई में झारखंड क्षेत्र के रणबांकुरों ने अहम भूमिका निभाई थी. अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले झारखंड की माटी के वीर सपूतों में एक थे सुखेंदु शेखर मिश्रा. मानभूम जिले के हुड़ा में ब्रिटिश पुलिस के खिलाफ सक्रिय सुखेंदु शेखर के दो खास मददगार थे. अतुल मिश्र और केस्टो चौधरी. हुड़ा में डाकघर को जलाने, पुलिस स्टेशन पर हमला करने और रेलवे लाइन को नुकसान पहुंचाने की वजह से वह काफी चर्चित हो गए थे. कई बार जेल जाना पड़ा. भोला पासवान इन्हें गुरुजी कहते थे. भोला पासवान जब बिहार के मुख्यमंत्री बने, तो इनसे मिलने चास आये. नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे, तब सुखेंदु शेखर मिश्रा को ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया था. सुखेंदु शेखर मिश्रा को केंद्र सरकार ने एक अटेंडेंट के साथ रेलवे का पास दिया था, लेकिन उन्होंने कभी उसका उपयोग नहीं किया.

चास प्रखंड के पुपुनकी गांव के रहने वाले थे सुखेंदु शेखर मिश्रा

सुखेंदु शेखर मिश्रा मूल रूप से बोकारो के चास प्रखंड के पुपुनकी गांव के रहने वाले थे. इनकी शिक्षा-दीक्षा उच्च विद्यालय कतरास से हुई थी. उनके पिता का नाम हरिहर मिश्रा था. वह हरिहर मिश्रा के 5 पुत्रों में चौथे नंबर पर थे. सुखेंदु के बड़े भाई अरदेंदु शेखर मिश्रा जमींदार थे. उनसे छोटे पुर्णेंदु शेखर मिश्रा सेल्स टैक्स कमिश्नर थे. सुखेंदु से बड़े सरदेंदु शेखर संस्कृत के प्रकांड विद्वान एवं वेद-वेदांत में एमए थे. वह घाटशिला उच्च विद्यालय में शिक्षक थे. उनके सबसे छोटे भाई का नाम प्रणविंदु मिश्रा था. सुखेंदु शेखर की एकमात्र बहन का नाम लुतु बाला था. उनका विवाह दुगदा में हुआ. सुखेंदु शेखर मिश्रा की मां सुशीला देवी राजमहल के कमालपुर गांव की थीं.

बेटा, मैंने किसी स्वार्थ के लिए आंदोलन नहीं किया. देशभक्त हूं. कोई भी लाभ लूंगा, तो मेरा संघर्ष व्यर्थ चला जायेगा.

सुखेंदु शेखर मिश्रा, स्वतंत्रता सेनानी

सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर लिया था भाग

सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले सुखेंदु शेखर मिश्रा को रवींद्र संगीत बहुत पसंद था. वह अपने बच्चों को आदर्श नागरिक बनने तथा सभ्यता-संस्कृति की शिक्षा देते थे. एक बार उनके पुत्र वासुदेव मिश्रा ने पूछा कि इतने ऊंचे पद पर हैं, तो इसका राजनीतिक लाभ लेना चाहिए. इस पर सुखेंदु शेखर ने अपने बेटे से साफ-साफ शब्दों में कहा, ‘बेटा, मैंने किसी स्वार्थ के लिए आंदोलन नहीं किया. देशभक्त हूं. कोई भी लाभ लूंगा, तो मेरा संघर्ष व्यर्थ चला जायेगा.’ आजादी के बाद सामाजिक कार्यों में भी सुखेंदु शेखर मिश्रा ने बढ़-चढ़कर योगदान दिया. पुपुनकी में स्कूल की स्थापना करायी. अस्पताल बनाने के लिए अपनी जमीन दान कर दी थी.

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थानेदार ने मित्रता की आड़ में गिरफ्तारी के लिए चली चाल

मानभूम जिले के हुड़ा थाना के थानेदार से उनकी मित्रता थी. बाद में उसी मित्र ने मित्रता की आड़ में उनकी गिरफ्तारी की चाल चली. योजनाबद्ध तरीके से पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया. उन्हें बांकीपुर जेल और उसके बाद हजारीबाग जेल में रखा गया. जेल जाने से इनकी मां शोकाकुल रहने लगीं और बीमार पड़ गयीं. मां से मिलने के लिए सुखेंदु शेखर को 7 दिनों की पेरोल मिली. मां की इच्छा बनारस जाने की थी. उन्हें वहां भेजा भी गया, लेकिन उसी दौरान उनकी मृत्यु हो गयी.

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सुखेंदु शेखर को गुरुजी कहकर बुलाते थे भोला पासवान शास्त्री

सुखेंदु शेखर मिश्रा की जेल में भोला पासवान शास्त्री से मुलाकात हुई. भोला पासवान उनको (सुखेंदु शेखर) को गुरुजी कहकर बुलाते थे. भोला पासवान शास्त्री जब मुख्यमंत्री बने, तो सुखेंदु शेखर मिश्रा से मिलने के लिए चास आये थे. नरसिम्हा राव जब प्रधानमंत्री थे, तब सुखेंदु शेखर मिश्रा को ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया. सुखेंदु शेखर मिश्रा के 3 पुत्र हुए. वासुदेव मिश्रा, वाचस्पति मिश्रा और बुद्धदेव मिश्रा. उनकी 3 पुत्रियां भी हुईं. वसुंधरा, विजया और सीमा. वाचस्पति की एक सड़क हादसे में मृत्यु हो गयी.

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