बोकारो को छाई प्रदूषण से मुक्ति दिलाएगी तकनीक
झारखंड राज्य प्रदूषण बोर्ड (Jharkhand State Pollution Board) के सुझाव पर बीपीएससीएल ने ऐश पौंड में ‘बायो स्टेबिलाइजेशन’ का काम चरणबद्ध ढंग से शुरू किया है. इसका पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है. इसकी सफलता को देखते हुए ‘बायो स्टेबिलाइजेशन’ का दूसरा चरण भी शुरू कर दिया गया है. यह तकनीक बोकारो को छाई प्रदूषण से मुक्ति दिलायेगा. इस तकनीक से लगभग छह हजार स्कावयर मीटर क्षेत्रफल में ‘वेटीवर ग्रास’ लगायी गयी है. इसका परिणाम उत्साहजनक रहा. इसके बाद दूसरा चरण शुरू हो गया है. छाई जनित प्रदूषण के नियंत्रण की दिशा में बीपीएससीएल की इस सार्थक पहल का परिणाम उत्साहजनक है.
2021 में 5500 स्क्वायर मीटर क्षेत्र में लगी थी वेटीवर ग्रास
बायो स्टेबिलाइजेशन तकनीक में फ्लाई ऐश पौंड में लंबे समय से पड़े ऐश के बड़े ढेर पर वेटीवर ग्रास लगायी जाती है. यह ग्रास फ्लाई ऐश के ढेर पर मजबूती से अपनी पकड़ बना लेती है. इससे छाई नहीं उड़ती है. विशेषज्ञ बताते हैं कि बायो स्टेबिलाइजेशन तकनीक के लिए पहले छाई के ढेर पर टेरेस (सीढ़ीनुमा आकार) बनाया जाता है. फिर पौधरोपण से पहले कई क्यारियां और तैयारियां की जाती है. इस पूरी प्रक्रिया में लगभग चार महीने का समय लगता है. पहले चरण में 2021 में ऐश पौंड में 5500 स्क्वायर मीटर क्षेत्र में वेटीवर ग्रास लगायी गयी थी. इसका परिणाम उत्साहजनक मिला. अब दूसरे चरण की तैयारी है.
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जूट जियो टेक्सटाइल, कोको फाइबर भरा, कोको जियो लॉग…
यहां उल्लेखनीय है कि झारखंड में पहली बार बीपीएससीएल बायो स्टेबिलाइजेशन तकनीक का उपयोग कर रहा है. इसके लिये जूट जियो टेक्सटाइल, कोको फाइबर भरा, कोको जियो लॉग व आउटर कोयर नेट, वेटीवर ग्रास, बायोमास सब्सटेट, सरफेस कवरिंग के लिये कंपोस्ट, माइक्रोबियल कंसोर्टियम, फर्टिलाइजर और हाइड्रो जेल, बैंबू स्टिक आदि की जरूरत होती है. उधर, बीपीएससीएल द्वारा ऐश पौंड क्षेत्र में सूचना पट्ट लगवा कर स्थानीय निवासियों द्वारा किसी तरह के कार्यकलाप न करने के लिए आगाह किया गया है. ऐश पौंड एक प्रतिबंधित क्षेत्र है. यहां रहना, नहाना या अन्य कोई कार्य खतरनाक साबित हो सकता है.
रिपोर्ट : सुनील तिवारी, बोकारो.