चाईबासा. सदर प्रखंड के लुपुंगुटु पड़ियारपी स्थित सभागार में संयुक्त महिला समिति फोरम की ओर से दो दिवसीय महिला दिवस सह कार्यशाला सोमवार को संपन्न हुई. कार्यक्रम में ज्योत्सना तिर्की ने महिलाओं की संघर्षशीलता और प्रकृति से उनके अटूट संबंध पर प्रकाश डाला. कार्यशाला में विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई, जिसमें आदिवासी स्वशासन, पेसा कानून, पर्यावरण संरक्षण, कृषि एवं वन उत्पादों में महिलाओं की भागीदारी, महिला मजदूरों के अधिकार और सरकारी योजनाओं पर वक्ताओं ने अपने विचार साझा किए. स्वशासन और महिला सहभागिता वक्ता शांति सवैयां ने कहा कि मुंडा-मानकी, मंझी-परगना, डोकलो-सोहोर और पड़हा-पंचायत जैसी पारंपरिक व्यवस्थाएं आदिवासियों के मजबूत स्वशासन का उदाहरण हैं. सरकार द्वारा लागू पेसा कानून इन व्यवस्थाओं को कानूनी समर्थन देता है, लेकिन इसे जमीनी स्तर पर प्रभावी बनाने के लिए महिलाओं की भागीदारी जरूरी है. वन और पर्यावरण संरक्षण शीतल बागे ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 की महत्ता बताते हुए कहा कि वन संरक्षण जैव विविधता और जलवायु संतुलन के लिए आवश्यक है. वहीं, सीता सुंडी ने बताया कि वन उत्पाद जैसे शहद, जड़ी-बूटियां और पत्ते आदिवासी समुदायों की आय का महत्वपूर्ण स्रोत हैं, इसलिए इनका सतत उपयोग सुनिश्चित करना जरूरी है. महिला मजदूरों के अधिकार लक्ष्मी सिरका ने कहा कि आदिवासी और ग्रामीण महिला मजदूरों को उचित मजदूरी और बेहतर कार्य परिस्थितियों के लिए कानूनी सुरक्षा की जरूरत है. वहीं, सुशीला बोदरा ने महिलाओं के शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीतिक भागीदारी और आर्थिक संसाधनों तक पहुंच को सशक्तीकरण की कुंजी बताया. कार्यशाला के अंत में खेलकूद प्रतियोगिता भी आयोजित की गई, जिसमें उपस्थित महिलाओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया. कार्यक्रम में पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां जिले की 70 महिलाओं ने सहभागिता की.
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