हूल दिवस के अवसर पर सोमवार को पथरगामा प्रखंड क्षेत्र में विभिन्न संस्थाओं और संगठनों की ओर से वीर शहीद सिदो-कान्हू, चांद-भैरो, फुलो-झानो और तिलका मांझी को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी. इस दौरान अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1855 में शुरू हुए संथाल विद्रोह को याद करते हुए उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लिया गया. राष्ट्रीय सेवा योजना की ओर से महाविद्यालय परिसर में आयोजित कार्यक्रम की अगुवाई प्रभारी प्राचार्य प्रो. प्रमोद कुमार महतो ने की. उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि भोगनाडीह, जहां से हूल विद्रोह की चिंगारी फूटी थी, वह गोड्डा जिले के पास ही है. प्राचार्य महतो ने बताया कि यह केवल अंग्रेजों के खिलाफ नहीं, बल्कि जल, जंगल और जमीन की रक्षा तथा शोषण के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह था. अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबाने के लिए सिद्धू-कान्हू को उनके ही गांव में फांसी दे दी थी. इस अवसर पर कार्यक्रम पदाधिकारी अजय कुमार वर्मा, प्रो. विपिन बिहारी सिंह, प्रो. प्रवीण कुमार सिंह, चंद्रशेखर ठाकुर, महेश्वर मांझी समेत कई शिक्षक व छात्र-छात्राएं उपस्थित थे. पथरगामा स्थित हापड़ाम आखड़ा आरी चाली बांचाव ट्रस्ट ने भी दी श्रद्धांजलि के कार्यालय में ट्रस्ट के जिलाध्यक्ष ज्ञानदेव टुडू की अध्यक्षता में कार्यक्रम आयोजित हुआ, जिसमें सिदो-कान्हू, चांद-भैरो, फूलो-झानो तथा तिलका मांझी की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गयी. जिलाध्यक्ष ने कहा कि आज के समय में शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार है. शिक्षित होकर संगठित संघर्ष ही अस्तित्व और अस्मिता की रक्षा कर सकता है. कार्यक्रम में सुभाष हेंब्रम, महेंद्र सोरेन, जिसूराम हेंब्रम, सक्ला मुर्मू, गोपाल टुडू, कृष्णा मुर्मू, विजय मुर्मू सहित कई सदस्य उपस्थित रहे. झारखंड मुक्ति मोर्चा के जिलाध्यक्ष प्रेमनंदन मंडल की अगुवाई में गांधीग्राम स्थित सिदो-कान्हू प्रतिमा स्थल पर माल्यार्पण किया गया. उन्होंने कहा कि 1855 में जब सिदो-कान्हू, चांद-भैरो, फूलो-झानो ने 50,000 आदिवासियों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की, तो वह आजादी की लड़ाई की एक अहम शुरुआत थी. उन्होंने कहा कि आज इन वीरों की गाथा देशभर में प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है. मौके पर पार्टी के कई पदाधिकारी और कार्यकर्ता मौजूद रहे.
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