Uttrakhand News: नैनीताल, इंग्लैंड के न्यूहैंपशायर में उगने वाला एक फल 80 सालों से उत्तराखंड के लोगों की जेब भर रहा है. अंग्रेज इसके पौधे को अपने साथ लाए थे और हिमालयी इलाकों में रोपा था. यह फल अब भी स्थानीय लोगों की आजीविका का जरिया बना हुआ है. यह कहानी है ड्राईफ्रूट ‘ चेस्टनट ‘ की , जिसे कुमाउनी भाषा में ‘ पांगर ‘ भी कहा जाता है. अंग्रेजों ने नैनीताल , रामगढ़ , मुक्तेश्वर , पदमपुरी आदि इलाकों में चेस्टनट के पांच सौ से अधिक पौधे लगाए थे. अनुकूल जलवायु के कारण ये पौधे कुछ समय बाद ही फल देने लगे. पद्मपुरी के काश्तकारों के अनुसार सितंबर में पांगर जमा करने का सीजन शुरू होता है. बड़े शहरों से लेकर विदेशों तक इसकी काफ़ी डिमांड है. पदमपुरी के किसानों ने पहली बार चेस्टनट की नर्सरी तैयार करने का प्रयास किया है. एक पौधा सौ रुपये तक बेचते हैं. पांच साल के बाद यह फल देना शुरू कर देता है.
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